इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के मायने: पसंदीदा कॉरपोरेट को बढ़ावा देना और उच्च शिक्षा के सार्वजनिक संस्थाओं का दम घोंटना

Modi (left ) and Ambani (right)
Modi (left ) and Ambani (right)

9 जुलाई 2018 को,  मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने छः उच्च शैक्षणिक संस्थानों को ‘प्रतिष्ठा संस्थान’ अर्थात ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ (IoE) घोषित किया। इन छह संस्थानों में से तीन सार्वजनिक और तीन निजी संस्थान हैं। मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के रिलायंस फाउंडेशन का ‘जिओ इंस्टीट्यूट’ भी IoE के रूप में घोषित छह संस्थानों में से एक है। जियो इंस्टीट्यूट अभी तक अस्तित्व में नहीं है और पहले से ही इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेन्स  प्रमाण पत्र से ‘सम्मानित’ किया गया है। यह MHRD की चौंकाने वाली घोषणाओं की श्रृंखला में एक नयी कड़ी है। इससे पहले 60 उच्च शैक्षणिक संस्थानों के लिए ‘स्वायत्तता’ की पूर्व घोषणा की गई तथा यूजीसी को ख़त्म करने के लिए एक अधिनियम का प्रस्ताव लाया गया।

‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ असल में वर्तमान सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के सार्वजनिक संस्थाओं की तुलना में निजी वित्त पोषित संस्थानों को बढ़ावा देने की आधिकारिक घोषणा है।

तो  आइए एक निर्वाचित सरकार द्वारा निजी शैक्षणिक संस्थानों को ‘प्रतिष्ठित’ करने की मंशा को समझें। भारत जैसे देश में जहां सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित छात्रों के लिए उच्च शिक्षा तक पहुंच सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है, सामाजिक समावेश के लिए शून्य प्रतिबद्धता वाले निजी संस्थानों को ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ (IoE) के रूप में प्रमाणित किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, निजी उच्च शिक्षा संस्थान एससी / एसटी / ओबीसी या पीएच जैसे सामाजिक रूप से वंचित समुदायों के लिए आरक्षण प्रदान नहीं करते हैं। हमारी सरकार आखिर किस तरह की ‘उत्कृष्टता’ को बढ़ावा देना चाहती है जिसमें उन समुदायों को ही शामिल नहीं किया गया है जो ऐतिहासिक रूप से शिक्षा के अवसरों से वंचित रहें?

निजी संस्थानों द्वारा ली जा रही अत्यधिक फीस उच्च शिक्षा से वंचित छात्रों के बहिष्कार का एक और तंत्र है। IoE का पैमाना ठीक करने के बजाय, सार्वजनिक और निजी संस्थानों में छात्रों से मनमाना शुल्क लेने के लिए ‘आजादी’ को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि यूजीसी के दिशानिर्देश में कहा गया है कि योग्यता के आधार पर चुने गए किसी छात्र को आर्थिक तंगी के कारण इन संस्थानों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन सवाल है कि यह कैसे निर्धारित किया जाएगा कि कौन सा छात्र चयनित होने पर शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ होगा? क्या उच्च शुल्क रखना अपने आप में ही सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों के लिए ऐसे संस्थानों में आवेदन करने से नहीं रोकेगा?

‘जियो इंस्टीट्यूट’ का अजीबोगरीब मामला

‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ (IoE) की घोषणा मुख्य रूप से मुकेश अम्बानी और नीता अंबानी के रिलायंस फाउंडेशन के ‘जियो इंस्टीट्यूट’ के कारण हुई, जिसे अस्तित्व में आने से पहले ही ‘एमिनेन्स’ संस्थान का टैग दे दिया गया। देशभर में इस निर्णय पर विरोध झेलने के बाद प्रकाश जावड़ेकर के MHRD ने स्पष्टीकरण दिया कि ‘जियो इंस्टिट्यूट’ को ‘ग्रीनफील्ड कैटेगरी’ के तहत चुना गया है। ‘ग्रीनफील्ड कैटेगरी’ उन संस्थानों को प्रदान किया जाता है जो अभी तक अस्तित्व में नहीं हैं, लेकिन स्थापित होने का प्रस्ताव है।ध्यान देने की बात है कि ‘ग्रीनफील्ड कैटेगरी’ में 11 आवेदन प्राप्त हुए, लेकिन केवल अंबानी के प्रस्ताव को ही ‘एमिनेंस’ का टैग मिला; और इस प्रकार अब रिलायंस कंपनी भी उच्च शिक्षा में निवेश में शामिल हो जाएगा। लेकिन यह योग्यता केवल रिलायंस फाउंडेशन को कैसे प्राप्त हुई?  असल में, यह जाहिर हो चुका है इसके नियमों को रिलायंस के अनुरूप ही तैयार किए गए थे, और साथ ही इसे MHRD के IoE के प्रावधानों के अंदर शामिल किया गया!IoE नियमों को MHRD के एक अधिकारी विनय शील ओबेरॉय द्वारा तैयार किया गया था जो बाद में रिलायंस फाउंडेशन में शामिल हो गए। वे विशेषज्ञों की सरकारी समिति के समक्ष जियो इंस्टीट्यूट की प्रस्तुति के दौरान मुकेश अंबानी के पक्ष में थे! संस्थान की स्थापना से पहले ही, सरकार ने अंबानी के निवेश को उच्च शिक्षा में ‘जिम्मेदार निजी निवेश’ मान लिया है जो ‘पूरी तरह से राष्ट्र को लाभान्वित’ करेगा। इस तरह के स्पष्टीकरण का इसके अलावा और क्या मतलब है कि अंबानी के नाम को ही हमारी सरकार द्वारा ‘जिम्मेदार निवेश’ मान लिया गया है! जियो इंस्टीट्यूट के पास उच्च शिक्षा का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है जिसके आधार पर “प्रतिष्ठा” का दावा किया जा सके। लेकिन हां, अंबानी मुंबई में धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल चलाते हैं। नीता अंबानी स्कूल की संस्थापक और अध्यक्ष हैं। यह स्कूल एलकेजी से कक्षा 4 के लिए 2.05 लाख रुपये तथा कक्षा 11-12 के लिए 9.65 लाख रुपये वसूलता है। करोड़पति और बड़ी हस्तियां के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं। इसी ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर भारत जैसे देश की निर्वाचित सरकार ने जिओ इंस्टीट्यूट को ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ का ख़िताब प्रदान कर दिया!“ग्रीनफील्ड श्रेणी” केवल निजी संस्थानों के लिए प्रतिष्ठा संस्थान टैग की सुविधा क्यों देती है? क्यों यह सुविधा सरकारी या सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों को नहीं है? या सरकार यह कहना चाह रही है कि उसके पास नया वर्ल्ड क्लास उच्च शिक्षण संस्थान स्थापित करने की कोई योजना ही नहीं है?अपने एक स्पष्टीकरण में MHRD यह भी कहता है कि निजी विश्वविद्यालयों को 1000 करोड़ के अनुदान नहीं दिए जाएंगे, जैसाकि सोशल मीडिया पर दावा किया गया। फिर IoE टैग द्वारा निजी संस्थानों को आखिर क्या फायदा होगा? सबसे पहले, भारत सरकार द्वारा दिए गए इस टैग के साथ ये संस्थान अब छात्रों से असीमित शुल्क मांगने के लिए पर्याप्त विश्वसनीय होंगे। IIT कानपुर के प्रोफेसर संदीप शुक्ला ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में समझाया है कि यह टैग निजी संस्थानों को DST, MEITY या इस तरह के अन्य किसी सरकारी निधि एजेंसी के माध्यम से अनुसंधान के लिए सरकारी वित्त पोषण पाने में भी मदद करेगा। यही वह रास्ता है जिसके माध्यम से इन संस्थानों को सामाजिक समावेश सुनिश्चित करने के लिए किसी भी प्रतिबद्धता के बिना सार्वजनिक वित्त पोषण मिलेगा।

 

सरकारी संस्थानों के लिए IoE टैग का क्या अर्थ है? ऐसा कहा जा रहा है कि सरकारी संस्थान जिन्हें IoE दर्जा दिया गया है उन्हें सरकार से 1000 करोड़ वित्तीय सहायता मिलेगी। और क्योंकि निजी संस्थान इसे प्राप्त नहीं करेंगे, इसलिए हमें IoE घोषणा पर ज्यादा शोर न करने के लिए कहा जा रहा है। आइये देखते हैं कि इस दावे की वास्तविकता क्या है? सरकारी संस्थानों के लिए IoE के यूजीसी दिशानिर्देश स्पष्ट रूप से बताते हैं कि “सहायता एक हजार रुपए करोड़ या संस्था द्वारा प्रस्तुत की गई विस्तृत योजनाओं में अनुमानित आवश्यकता का 50% से 75% तक होगी, इसमें जो कम है।”यूजीसी दिशानिर्देशों के प्रावधानों से ये तीन बातें स्पष्ट हैं-पहली बात, 1000 करोड़ रुपये वह राशि नहीं है जिसे IoE प्राप्त सरकारी संस्थान प्राप्त करने जा रहे हैं।दूसरी यह कि  सरकार IoE द्वारा आवश्यक परियोजना के लिए 50% से 75% से अधिक राशि की कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।और तीसरा, क्योंकि IoE को सरकारी अनुदान एक ही बार मिलेगा इसलिए उसे अपनी परियोजना को जारी रखने के लिए खुद ही योजना विकसित करनी होगी।क्या यह सरकारी IoE को अनिश्चितता और असुरक्षा में धकेलने का एक मॉडल नहीं है? क्या यह  सरकारी संस्थानों को ‘आत्म-वित्त पोषण’ (निजीकरण) और फीस-वृद्धि की ओर धकेलने का मॉडल नहीं है जो गरीबों-वंचितों को उच्च शिक्षा से बेदखल कर देगा? IoE की तथाकथित ‘स्वायत्तता’ या ‘आजादी’ UGC या आने वाले दिनों में भारत के उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की मंजूरी के बिना नए पाठ्यक्रम शुरू करने की स्वतंत्रता है। यह स्वायत्तता केवल इस शर्त पर है कि वे नए पाठ्यक्रमों के लिए सरकार से पैसे नहीं लेंगे। MHRD द्वारा पहले 60 उच्च शैक्षणिक संस्थानों को दी गई ‘स्वायत्तता’ का भी अर्थ था- ‘आत्म-वित्त पोषण’ और शुल्क वृद्धि का एक और हमला।

 

यूजीसी को ख़त्म कर उसकी जगह लेने वाले प्रस्तावित HECI को अकादमिक गुणवत्ता, उसके परिणामों, अकादमिक मानकों, सरकारी संस्थानों के पाठ्यक्रमों के मानक निर्धारित करने का अधिकार होगा। साथ ही, यदि कोई संस्थान निर्धारित मानकों पर खड़ा न उतरे तो उसे बंद करने का भी अधिकार दिया जाएगा। लेकिन निजी विश्वविद्यालयों सहित IoE प्राप्त संस्थानों को बिना किसी अनुमोदन के पाठ्यक्रम निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी जा रही है। ऐसी स्थिति में वैसे पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा जो धन उगाही के अनुकूल हों तथा जिसे कोई निजी कंपनी प्रयोजित करे। सरकार की ये आर्थिक नीतियां हर तरह से कॉरपोरेट-परस्त और गरीब-विरोधी हैं। ऐसे में वे क्या जियो इंस्टिट्यूट जैसे संस्थानों के पाठ्यक्रमों को सही मानने के लिए नीतियों को बदलने के लिए तैयार नहीं होंगे? असल में भारत को एक आत्मनिर्भर और लोकतांत्रिक देश बनाने के लिए आवश्यक पाठ्यक्रम को निशाना बनाया जा रहा है। ये पाठ्यक्रम ऐसी स्थिति में जीवित रह पाएंगे।

आखिरकार, MHRD को स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर किस प्रावधान से IoE के लिए आवेदन करने वाले संस्थानों से शुल्क के रूप में 1 करोड़ रुपए लिए गए। इस 1 करोड़ में से केवल 75 लाख रुपये सरकार द्वारा उन संस्थानों को वापस किया गया जिन्हें IoE दर्जा नहीं मिला। जेएनयू समेत 74 सरकारी संस्थानों ने MHRD को यह एक करोड़ रुपये दिए और अब उन्हें 25 लाख रुपये वापस नहीं मिलेगा। ये पैसे इन विश्वविद्यालयों के छात्रों के आवश्यक शैक्षणिक आधारभूत ढांचे पर खर्च हो सकते थे।

इस प्रकार, IoE घोषणा निजी संस्थानों और सत्तारूढ़ पार्टी के पसंदीदा कॉर्पोरेट को सरकारी खजाने की लागत पर बढ़ावा देने के लिए एक बड़े डिजाइन का हिस्सा है। यह उन सार्वजनिक संस्थानों की कीमत पर होगा जहाँ एक छात्र पढना तो चाहता है पर आर्थिक कारणों से वंचित रह जाता है। भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली को पहले से ही श्रेणीबद्धता में धकेल दिया गया है, जहां अमीरों के बच्चों के स्कूलों में शिक्षक और क्लासरूम तो होते हैं पर गरीब बच्चों के नसीब में शिक्षकों, कर्मचारियों और बुनियादी ढांचे सब की कमी है। IoE सहित MHRD द्वारा हालिया घोषणाओं की श्रृंखला का उद्देश्य भारतीय उच्च शिक्षा को भी उसी विनाशकारी दिशा में धकेलना है।

मोदी सरकार उच्च शिक्षा की दुकान चलाने के इच्छुक कॉर्पोरेट लूटेरों को ‘जियो / जियो’ (जिंदा रहो, फलो-फूलो) कह रही है, जबकि उच्च शिक्षा के उन सार्वजनिक संस्थानों को ‘मारो / मरो’ (मार डालो / मर जाओ) कह रही है, जो वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को आगे बढ़ने का मौका देते हैं।

 

 

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One thought on “इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस के मायने: पसंदीदा कॉरपोरेट को बढ़ावा देना और उच्च शिक्षा के सार्वजनिक संस्थाओं का दम घोंटना

  1. मणिपुर विवि में छात्र छात्राएँ पिछले 40 दिनों से हड़ताल पर और दो दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं और HRD मंत्री Institute of Eminence का राग आलाप रहे हैं। Institute of Eminence – मतलब वो संस्थान जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति लाकर विश्व भर में देश का नाम रोशन करेंगे। इनसे उम्मीदें हैं कि अगले दस वर्षों में ये विश्व के सर्वोत्कृष्ठ 500 संस्थानों में शामिल हो पाएँगे। सरकारी संस्थानों को इसके तहत सरकारी फंड मुहैया कराया जाएगा जबकि प्राइवेट संस्थान अपनी फंडिंग के दम पर ये माइलस्टोन हासिल करेंगे

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