भारत 2014: भ्रष्ट- साम्प्रदायिक- कॉर्पोरेट-फासीवादी षड्यंत्रों को ध्वस्त करो !

भारत 2014:

भ्रष्ट- साम्प्रदायिक- कॉर्पोरेट-फासीवादी षड्यंत्रों को ध्वस्त करो !

दस्तक दे रहे 2014 के लोक सभा चुनाव में देश की जनता ने लूट, दमन और भ्रष्टाचार का पर्याय कांग्रेस-संप्रग को सज़ा देने और बदलाव के लिए वोट करने का निश्चय किया है। इस जायज गुस्से का पफायदा उठाते हुए नरेन्द्र मोदी को आगामी प्रधनमंत्री के रूप में प्रस्तुत करने के लिए एक सुव्यवस्थित अभियान चलाया जा रहा है और नरेन्द्र मोदी को इन सारी समस्याओं का हल बताया जा रहा है।

क्या मोदी सच में इस संकट का समाधन है? या फिर मोदी के लिए हर एक वोट इस भ्रष्टाचार, कॉर्पोरेट लूट और दमन के संकट को और गहरा देगा?

2004 में NDA के हार के दो बड़े कारण थे-पहला, 2002 में गुजरात नरसंहार में मोदी सरकार की भूमिका और दूसरा राजग सरकार का फर्जी ‘इंडिया शाइनिंग’ प्रचार, जो कि नवउदारवादी नीतियों से उपजी बेरोज़गारी, किसानो की आत्महत्या एवं महंगाई की मार सहती जनता पर एक क्रूर मजाक था. देश ने 2004 में इसे ‘फेकू’ कहकर नकार दिया।

poverty lineलेकिन आज एक दशक बाद उसी मोदी को जो 2004 की हार के लिये जिम्मेद्दार था, एक विकल्प के रूप में क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है?

‘नमो’ प्रचार अभियान के तहत 2002 के विभत्स नरसंहार के आरोपी मुख्यमंत्री का ‘इमेज मेक-ओवर’ कर ‘सुशासन’ और ‘आर्थिक विकास’ के मसीहा के रूप में दिखाया जा रहा है। इस ‘इमेज मेकओवर’ में ।च्ब्व् जैसी दुनिया की कुख्यात च्त् एजेंसियां तथा तमाम कॉरपोरेट मीडिया जुटी हुई है। इस ब्रांड मैनेजमेंट के दो नारे हैं- 2002 को और उस दौरान हुए बलात्कार, हत्या तथा फर्जी मुठभेड़ों को भूल जाओ और मोदी के ‘वृद्धि, ‘विकास’ तथा ‘सुशासन’ मॉडल के साथ ‘परेड’ करो। यानि कि यदि हम ‘सुशासन’ चाहते है तो हम ये मान लें कि सांप्रदायिक दंगे, फर्जी मुठभेड़ या कॉरपोरेट द्वारा भूमि अधिग्रहण आदि बेमतलब के सवाल हैं।

 

 

मोदी ने अपनी छवि चमकाने का ठेका किसको दिया?

19 नवंबर, 2007 के टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर

तानाशाह भी शामिल हैं मोदी की छवि चमकाने वाली कंपनी के ग्राहकों में ; (http://timesofindia.indiatimes.com/home/specials/Modis-image-builders-have-dictators-on-client-list/articleshow/2600140.cms)

modi apcoहिटलर एकधूर्त प्रोपोगैंडिस्ट था। मोदी भी छवि की ताकत में विश्वास करते हैं। शायद इसीलिए मोदी ने अपनी छवि गढ़ने के लिए एक ऐसी अमरीकी कंपनी चुनी है जिसके ग्राहकों में नाइजीरिया के पूर्व तानाशाह सानी अबाचा और कज़ाकस्तान के आजीवन राष्ट्रपति नूरसुल्तान अबिसुली नजरबाए जैसे लोग शामिल हैं।

वाशिंगटन से काम-धम करने वाली ।च्ब्व् वल्र्डवाइड को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि सुधरने के लिए इस साल (2007 में) अगस्त में विधनसभा चुनाव के ठीक पहले मोदी ने ठेका दिया। इस कंपनी के हालिया ग्राहकों में एक हैं- कभी कम्युनिस्ट युवा नेता रहे रूस के माइकल खोदोरकोव्स्की, जो अब माफिया से साठ-गांठ कर करोड़पति हो गए हैं।

अपने जनाधर से दूर जा गिरे नेताओं की छवि गढ़ने-चमकाने में इस कंपनी को महारत हासिल है। इसी लिहाज से ।च्ब्व् वल्र्डवाइड ने सलाह दी कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच गुजरात ब्रांड की छवि गढ़ी और बेची जाये। परन्तु सूत्र बताते हैं कि 2002 के जनसंहार की कालिख के नाते अमरीकी वीजा से महरूम मोदी चाहते हैं कि उनकी छवि सुधरी जाये जिससे कि आगे वे अमरीका की यात्रा कर सकें….

गुजरात सरकार इस कंपनी को मोदी के छवि निर्माण के लिए हर महीने 25000डॉलर का भुगतान कर रही है। 

सूत्र बताते हैं कि इस छवि-निर्माण का ख्याल मोदी को इसी साल (2007 में) स्विट्जरलैंड यात्रा के दौरान आया। सो गुजरात सरकार ने बगैर टेंडर निकाले ऐसी सात राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में से दो को चिन्हित किया जो दूसरों से तीन गुना ज्यादा रकम लेने वाली थीं। ।च्ब्व् को ठेका दिया गया। इस चयन का कारण यह बताया गया कि ।च्ब्व् के पास ज्यादा बढि़या टीम है। ।च्ब्व् के साथ काम करने वालों में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स-  दोनों धड़ों के पूर्व सीनेटर हैं।

 

 

इस पूरी छवि-चमकाऊ कसरत का असल मकसद क्या है ?

EPW ने 20 अप्रैल, 2013 को अपने संपादकीय में लिखा – ‘‘साफ है कि यह पूरी परियोजना 2014 के चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाले संप्रग के खि़लाप़फ नरेंद्र मोदी को विपक्ष का निर्विवाद नेता बनाने के लिए थी और इस काम में यह परियोजना सपफल साबित हुई। मौजूदा और संभावित घटक दलों की बाधओं और संघ परिवार की भीतरी गणित को पार करते हुए इस परियोजना ने भारत के राजनीतिक वर्ग के सामने पत्ते खोल दिये- कांग्रेस के खि़लाप़फ खड़ी ताकतों को मोदी के पाले में जाना होगा, अन्यथा 2014 के चुनाव-बाद की लोकसभा में ऐसी ताक़तें राजनैतिक रूप से अप्रासंगिक होने के लिए तैयार रहें…

मोदी के इस छवि-चमकाऊ अभियान का संदेश क्या है ? ध्यान से बुने गए भाषणों और सजाई गई मंचीय झांकियों के पीछे भारत के उद्योगपति, शहरी व्यवसायियों और ग्रामीण अमीर प्रभुवर्ग को मोदी का संदेश है कि पूंजी के बड़े प्रसार और ज्यादा मुनाफे वाली अपेक्षाकृत बेहतर आर्थिक वृद्धि के रास्ते में आने वाली बाधाओं को वे नेस्तनाबूद कर सकते हैं। वे लोकतन्त्र का ऐसा ‘प्रबंधन’ करेंगे जैसा गुजरात में किया-

एक तरफ सांप्रदायिक आतंक फैलाएंगे और दूसरी ओर कुछ कॉर्पोरेट गिरोहों का मुंह आर्थिक तोहफे से भर देंगे। कांग्रेस ने जैसा इस काम को पिछले दशक में अंजाम दिया है, मोदी का वादा है कि वे इस काम को और बेहतर अंजाम देंगे”

 

 

सच्चाई यह है कि गुजरात किसी भी पैमाने पर अन्य दूसरे राज्यों से बेहतर स्थिति में नहीं है। और इससे भी बढ़कर गुजरात का नवउदारवादी विकास के मॉडल का असर आम जनता की जिंदगी और आर्थिकी पर अपेक्षाकृत बुरा पड़ा। आज इस देश की ज़रूरत भ्रष्ट, कॉरपोरेट परस्त न्च्। सरकार के बदले दूसरी भ्रष्ट, काॅरपोरेट परस्त सांप्रदायिक पफासीवाद नहीं है। बल्कि,आवाम के लिए अगर कोई असली बदलाव होगा तो वह चेहरे का नहींऋ सियासत और नीतियों का बदलाव होगा।

आइये मोदी के प्रचार और तथ्यों की हकीकत पर करीबी नज़र डालते हैं कि क्या मोदी सच में न्च्। सरकार की नीतियों का कोई विकल्प है?

आर्थिक विकास दर के आंकड़ों के अनुसार पांच सालों (2006-11) के दौरान गुजरात को महाराष्ट्र, हरियाणा, छत्तीसगढ़, बिहार, और उडि़सा ने कापफी पीछे छोड़ दिया है (इकोनोमिक टाइम्स, 26 दिसम्बर 2012)। प्रति व्यक्ति आय के लिहाज़ से 2011 में हरियाणा (92,327 रु), महाराष्ट्र (83,471 रु), पंजाब (67,473 रु), तमिलनाडु (72,993 रु) और उत्तरांचल (68,292 रु) के बाद गुजरात (63,996 रु) 6वें स्थान पर है। जबकि प्रति व्यक्ति कर्ज के मामले में गुजरात आज यूपी और बिहार से भी आगे है।

निवेश सूचकांक: ‘वाइब्रेंट गुजरात’ के चकाचौंध के विपरीत असलियत में  ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ में गुजरात 5वें स्थान पर है। महाराष्ट्र इसमें प्रथम है। गुजरात सरकार के अपने ‘सोशियो-इकॉनोमिक रिव्यू, 2011-12’ के अनुसार 2011 में 20 लाख करोड़ से अधिक निवेश के लक्ष्य के बरक्स यह महज़ 29,813 करोड़ का ही हुआ। उसी साल, 8,300 से अधिक समझौते (डव्न् पर हस्ताक्षर) हुए लेकिन सिर्फ 250 ही हक़ीकत में हो पाए (प्रफंटलाइन, 8 मार्च, 2013)।

औद्योगीकरण की स्थितिः गुजरात में विकसित हुए अधिकांश उद्योग ख़तरनाक ज़हरीले रसायन उत्पन्न करने वाले हैं। गुजरात में देश के सबसे अधिक प्रदूषण के केन्द्र वाली जगहें हैं और साथ ही 184 में से 74 तहसीलों का ज़मीन के नीचे का पानी दूषित हो गया है। गुजरात में 2012-13 के दौरान 60,000 से अध्कि छोटे-बड़े उद्योग बंद हो गये। गुजरात में प्रति व्यक्ति आय वहां के शहरी आय की तुलना में आधी है जो वहां के शहर और गांव के बीच की भारी असमानता को दर्शाती है। अतः यह स्पष्ट है कि गुजरात ने मोदी के राज में कोई ‘विशेष’ आर्थिक वृद्धि नहीं की। शहरीकृत गुजरात हमेशा से बड़े उद्योगों और व्यावसायिक समुदायों का घर रहा है मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही।

सामाजिक विकास के पैमाने पर गुजरातः

modi pulicityसामाजिक क्षेत्रा (Social Sector) में खर्च के हिसाब से 21 बड़े राज्यों में गुजरात 19वें स्थान पर है। 2011 में मानव विकास सूचकांक में गुजरात का 11वां स्थान था। शिक्षा और स्वास्थ्य के मामलों में गुजरात गिरकर 19 बड़े राज्यों में व्रफमशः 9वें और 10वें स्थान पर आ गया।स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के मानकों में कापफी अधिक गिरावट है खासकर स्त्रियों और बच्चों के मामलों में। बच्चों का स्कूलों से पढ़ाई छोड़ कर निकल जाने का दर यहां 58% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह सिपर्फ 49% है। गुजरात में दलितों और आदिवासियों में यह दर बढ़कर क्रमशः 65% और 78% हो गया। उच्च शिक्षा में दाखि़ला लेने वालों का औसत यहां 17.6 है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 20.4 है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र में यह क्रमशः 38.2 और 27.4 है। शिशु मृत्यु दर में कमी के लिहाज से गुजरात 10वें स्थान पर है। उसमें भी अद्भुत तरीके से लड़कियों में यह अधिक है। जीवन के औसत आयु में यह 8वें (62.15 वर्ष) स्थान पर है जो कि बिहार (62.85 वर्ष) से भी कम है। 45% शहरी बच्चे और 60% ग्रामीण बच्चे प्रतिरोधक टीकों से वंचित हैं। ग्रामीण इलाकों में 60% प्रसव बिना किसी संस्थानिक व्यवस्था के होती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 34% डॉक्टर का अभाव है, जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल पोषण और स्त्री रोगों के विशेषज्ञों की 94% की कमी है। बुनियादी ढांचे का भी निर्माण नहीं हुआ है- 21% उपकेन्द्र, 19% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 11% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का अस्तित्व तक नहीं है। आदिवासी इलाकों में 70% एक्स-रे टेक्निशियन और 63% पफार्मासिस्ट की नियुक्ति तक नहीं हुई है जबकि विशेषज्ञ डाक्टरों का अभाव 100% है। वैश्विक भूख सूचकांक में गुजरात भारत के 28 राज्यों में से अंतिम पांच राज्यों में है। वैश्विक स्तर पर इसका प्रदर्शन हैती (भ्ंपजप) जैसे देशों से भी बुरा है। गुजरात में 4 साल की उम्र से कम के 80 प्रतिशत बच्चों और 60 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) है। याद कीजिये मोदी ने इसी को यह कह कर उपहास उड़ाया था कि महिलाएं आजकल सुंदर दिखने के लिए भूखी रहती हैं!

रोज़गारविहीन वृद्धि गुजरात के लिए नियति बना दी गई है। छैैव् के आंकड़े दिखाते हैं कि 1993-94 से 2004-05 तक वहां रोज़गार में वृद्धि 2.69ः प्रति वर्ष थी, जबकि 2004-05 से 2009-10 में यह गिरकर शून्य (0%) हो गई। हाल ही में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अतुल सूद ने अपनी किताब Poverty Amidst Prosperity: Essays on the Trajectory of Development in Gujarat, में दिखाया है कि गुजरात में ‘‘सिर्फ बेरोज़गारी में वृद्धि ही नहीं, मज़दूरी से हुए आय का हिस्सा कुल आय में सबसे कम है। संगठित उत्पादन कार्य में सबसे अध्कि ठेका मज़दूर यही लगे हैं, अस्थायी मज़दूरों की प्रवृत्ति वहां तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा 50 लाख जि़दगियां विकास परियोजना के चलते अस्त-व्यस्त हो गई, जो कि पूरी आबादी का 10 वां हिस्सा है। गुजरात में श्रम कानूनों का कोई अस्तित्व भी नहीं है।’’

बहुचर्चित सरदार सरोवर परियोजना की हक़ीकतः इस परियोजना के तहत नहर निर्माण के कार्य का अध्किांश अब तक लंबित है, जिससे कच्छ और सौराष्ट्र की सूखी ज़मीन को पानी नसीब नहीं हुआ। इसके विपरीत 3.7 बिलियन घन मीटर पानी उद्योगों और गिने-चुने शहरी इलाकों में मोड़ दिया गया ;ीजजचरूध्ध्दबंण्हवअण्पदध्दमूेऋपदकमगण्ीजउद्ध। ज़रूरत मंद किसानों और गांवों के नाम पर जबरन लाए गए इस परियोजना को बड़े पैमाने पर उद्योगपतियों, शहरों व नगरनिगमों को इस्तेमाल के लिए दिया जाना कितना उचित है?सिपर्फ यही नहीं, मोदी सरकार ने सरदार सरोवर परियोजना के लिए सुरक्षित सिंचाई की ज़मीन से 4 लाख हेक्टेयर निकालकर बड़े काॅरपोरेट्स, सेज ;ैमर््द्ध और ैप्त्  को सौंप दिया गया।

पर्यावरण की अपूरणीय क्षति की क़ीमत पर काॅरपोरेट लूटेरों को खुली छूटः गुजरात में, चंद काॅर्पोरेट्स के लिए पर्यावरण नियंत्राण के सारे मापदंडों का लगातार उल्लंघन कर पर्यावरण और पानी जैसे अनिवार्य साध्नों पर भयानक प्रभाव डाला जा रहा है। पिछले 10 सालों में नर्मदा के नहरों के कारण जो बड़ी संख्या में औद्योगिक हब तैयार हुए हैं उनसे निकले रासायनिक पदार्थ को माही नदी में गिराया जा रहा है। इन नए औद्योगिक संयंत्रों में से कोई भी, किसी भी प्रकार से ‘गुजरात प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड’ के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं। नतीजे में, राज्य में अध्किांश नदियां बुरी तरह प्रदूषित हो रहे हैं। गुजरात के तीन शहर- वापी, अंकलेश्वर, और वातवा ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड’ की सूची में भारत में शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में आते हैं। इनमें वापी पहले स्थान पर है। तटीय क्षेत्रों में बनाये जा रहे निजी बंदरगाहों और ैमर्् ;सेजद्ध, ‘तटीय नियमन क्षेत्रा’ के नियमों के खुलेआम उल्लंघन के उदाहरण हैं। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 600 गांवों को अगले पांच वर्षों में कृषि कार्य से हाथ धेना पड़ेगा। स्थानीय व्यवसाय और पारिस्थितिक स्थिरता की कीमत पर काॅर्पोरेट को बढ़ावा देने का अंध जुनून, मुश्किल से जिस ‘विकास माॅडल’ को दर्शाता है वह महज़ मोदी सरकार और काॅर्पोरेट दिग्गजों व भूमापिफयाओं के बीच गठजोड़ को दर्शाता है।

कृषि की स्थिति पर अगर हम नज़र डालें तो गुजरात में भूमि सुधर के तमाम सि(ांतों को सर के बल खड़ा कर दिया गया है। मोदी की अर्थनीति के समर्थक गुजरात की कृषि को तेज गति से काॅर्पोरेट के सामने दंडवत किए जाने पर गर्व करते है।कृषि के इस माॅडल का प्रत्यक्ष परिणाम कृषक समुदायों के गरीब तबके का और भी हाशिये पर ध्केलना है। बाहरी भूमापिफयाओं को ग्रामीण भूमिबाजार में प्रवेश करने की कानूनी अनुमति देकर दरअसल बड़े व्यापारिक घरानों को सीमांत किसानों के अध्किारों व उनकी ज़मीन लूटने केलिए मैदान तैयार किया गया हैं। इसका सीध परिणाम हुआ कि गुजरात में सीमांत जोत का औसत आकार राष्ट्रीय औसत की तुलना में दिन-प्रतिदिन कमतर होता जा रहा है। वही दूसरी ओर सबसे बड़े आकार वाली ज़मीनों ;20 हेक्टेयर से ऊपरद्ध के मामले में यह राष्ट्रीय औसत से बढ़ता दिखाई दे रहा है। समय के साथ लगातार दलितों और आदिवासियों का भूमि पर मालिकाना अध्किार की स्थिति और भी बदतर होती जा रही है।

आक्रामक काॅर्पोरेट के पक्ष में बनाई गई नीतियोंके चलते सीमांत किसानों का अपनी आजीविका के स्रोत को बचा और पाना खेती का काम जारी रख पाना असंभव होता जा रहा है। इसके चलते वे अपनी ज़मीन को पट्टे पर देने या बेच देने को विवश हैं।

सार्वजनिक ढांचों में निजीकरण को प्रोत्साहनः विकास का गुजरात माॅडल की प्रमुख विशेषता बंदरगाह, रेल, सड़क और बिजली में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना है। जहां एक तरपफ इसने निजी घरानों को उनके मुनाप़फे के लिए सभी क्षेत्रों में खुली छूट दे रखी है वही दूसरी ओर ढांचागत सुविधओं को मानव बस्तियों तक ले जाने को नकार दिया गया है। आज भी गुजरात की 3380 बस्तियां सड़क के साथ जुड़ी हुई नहीं हैं।

भ्रष्टाचार और काॅर्पोरेट द्वारा भूमि हड़प का हिसाब कौन देगा?

सीएजी आॅडिट ने इस बात का खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने केंद्र में जो किया मोदी ने उसी को गुजरात में अंजाम दिया:- जनता के खजाने से उसकी आजीविका की क़ीमत पर उद्योगपतियों को भारी पैमाने पर मुनापफा पहुंचाना। 30 मार्च 2012 को गुजरात विधनसभा में पेश की गई 2010-11 की सीएजी की रिपोर्ट में वर्ष 2010-11 में 16,000 करोड़ रुपये से अध्कि की धंध्ली को दिखाया गया। इसमें मोदी सरकार द्वारा पिछले नौ सालों में की गई 26,672 करोड़ रुपये की अनियमितताओं की ओर भी इशारा किया गया ;क्छ। 31 मार्च 2012द्ध। उदाहरण के लिए सीएजी ने यह दिखाया कि मोदी के ‘शान’‘गुजरात स्टेट पेट्रोलियम काॅर्पोरेशन’ को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि केजी ;कृष्णा गोदावरीद्ध बेसिन ब्लाॅक में आवश्यकता से अध्कि खर्च ;7,000 करोड़ रुपये से अध्किद्ध करने के बावजूद भी उत्पादन शुरू नहीं हुआ।

अनियमितताओं और केजी बेसिन परियोजना पर अत्यध्कि खर्च के अलावा सीएजी ने यह भी पाया कि मोदी का चहेता औद्योगिक घराना, ‘अदानी ग्रुप’ को अनुचित आर्थिक तोहपफे के कारण भी गुजरात स्टेट पेट्रोलियम काॅर्पोरेशन को वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ा। सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि ‘‘2006-09 के दौरान, जीएसपीसी ;गुजरात स्टेट पेट्रोलियम काॅर्पोरेशनद्धने अपनी खरीद मूल्य की तुलना में कापफी कम दाम पर अदानी समूह को गैस बेच दिया जिससे उसे 70.5 करोड़ रुपए ;705 मिलीयनद्ध का नुकसान हुआ।

भूमि आवंटन के मामले में भी सीएजी ने मोदी सरकार के कार्यकाल में राज्य खजाने से 580 करोड़ रुपए का नुकसान दिखाया जो रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, एस्सार स्टील, अदानी पावर लिमिटेड, एवं पफोर्ड जैसी काॅर्पोरेट घरानों का पक्ष लेने की वजह से हुआ।;द हिन्दू , 4 अप्रैल 2013द्ध

रतन टाटा ने क्यों कहा कि ‘अगर आप गुजरात में नहीं हैं तो मूर्ख हैं’ ? गुजरात सरकार द्वारा टाटा मोटर्स लिमिटेड को साणंद के पास नैनो प्लांट के लिए 1100 एकड़ जमीन 900 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से दी गई जबकि इसका बाजार भाव 10,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर के आसपास था। इसके अलावा, नैनो परियोजना को गुजरात में लाने के लिए 0.1 पफीसदी की नगण्य ब्याज पर रतन टाटा को 9570 करोड़ रुपये तोहपफानुमा कर्ज दिया गया. इस ‘कर्ज’ की अदायगी को 20 साल के लिए स्थगित कर दी गई। कुल मिलाकर, मोदी सरकार ने 2,000 करोड़ रुपये के नैनों प्रोजेक्ट के लिए टाटा मोटर्स को  30,000 करोड़ रुपए की छूट की पेशकश की। तब रतन टाटा क्यों न बोले…

modi_adani_plane_20140310अदानी समूह को मुंद्रा पोर्ट एवं मुंद्रा विशेष आर्थिक क्षेत्रा ;सेजद्ध के लिए 1 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि आवंटित की गई। 1 मार्च, 2012 को गुजरात के राजस्व मंत्राी ने विधनसभा में स्वीकार किया कि ‘अदानी समूह की अलग अलग कंपनियों के लिए कच्छ में 14,305.49 एकड़ ज़मीन ;5.78 करोड़ वर्ग मीटर के बराबरद्ध आवंटित किया गया। इस ज़मीन को 1 रुपये से 32 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से दिया गया;क्छ। 1 मार्च 2012द्ध। इसी प्रकार रहेजा जैसे रियल एस्टेट मापिफयाओं को औने पौने दाम पर ज़मीनें दी गई जबकि सार्वजनिक क्षेत्रा के भारतीय वायुसेना को ज़मीन के लिए बहुत अध्कि कीमत का भुगतान करने के लिए कहा गया।

गुजरात विशेष निवेश क्षेत्रा ;ैप्त्द्ध, 2009 अध्निियम से लैस मोदी सरकार ने खेती, चारागाह, वन की भूमि को हथियाने के लिए गुजरात के हर हिस्से पर हमला शुरू कर दिया है। जामनगर के आसपास के ग्रामीणों ने 610 एकड़ जमीन रिलायंस समूह को दिए जाने के खि़लाप़फ विरोध् शुरू कर दिया है। मोदी के आक्रामक जमीन हड़प नीति के खि़लाप़फ इसी तरह के विरोध् प्रदर्शन मध्य व दक्षिणी गुजरात के अनेक हिस्सों जैसे ढोलेरा, वागरा, कर्जन, नवसारी आदि में मजबूती के साथ सामने आ रहे हैं।

यही वजह  है कि मोदी ने बहुत लंबे समय तक गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति को रोकने की पूरी ताकत लगायी। ख़ासकर तब जबकि वह कम से कम 17 बड़े भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामलों में आरोपों का सामना कर रहा है।

modi ambi 2गुजरात के प्रावृफतिक संसाध्नों पर किस तरह के लागों का नियंत्राण है- यह बात छिपी नहीं है! सौरभ पटेल जिसने अमेरिका से एमबीए किया आज गुजरात मंत्रिमंडल का सबसे अमीर आदमी और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है । लेकिन असली बात तो ये है कि सौरभ पटेल, मुकेश अंबानी के चचेरे भाई विमल अंबानी के सगे बहनोई हैं। अब अनुमान लगाइये कि कौन-कौन से मंत्रालय उसकी मुट्ठी में हो सकते हैं:

ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल्स, उत्खनन एवं खनिज, कुटीर उद्योग, नमक उद्योग, मुद्रण, स्टेशनरी, योजना, पर्यटन, नागरिक उड्डयन और श्रम एवं रोजगार!! … अब तक तो सिर्पफ गुजरात ही रिलायंस की मुट्ठी में है। मोदी प्रधनमंत्राी बनेगा तो अनुमान लगाइए कि भारत किसकी मुट्ठी में होगा।

गुजरात के बाहर भाजपा के भ्रष्टाचार और जनगद्दारी का इतिहासः

sushma reddyकर्नाटक में भी सरकार चलाने का भाजपा के ट्रैक रिकाॅर्ड लौह अयस्क जैसे प्राकृतिक संसाधनों की लूट से जुड़ा हुआ है। बेल्लारी ब्रदर्स ;जी. करुणाकर रेड्डी, जी. जनार्दन रेड्डी और जी. सोमाशेखर रेड्डीद्ध की कहानी सब अच्छी तरह जानते हैं। कर्नाटक लोकायुक्त के एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि उस उत्खनन का कुल लागत जहां महज़ 427 रुपये प्रति टन आया वहींअयस्क का बिक्री मूल्य 7000 से 5000रुपये प्रति टन था। रेड्डी बंध्ुओं को इसमें 80%-90% का चैंका देने वाला मुनाप़फा हुआ था। राज्य सरकार को प्रति टन मात्रा 27 रुपये की राॅयल्टी मिली। रेड्डी बंध्ुओं में से दो कर्नाटक के भाजपा सरकार के कैबिनेट में रह चुके हैं जबकि तीसरा ज्ञंतदंजंां डपसा थ्मकमतंजपवद के दबंग चेयरपर्सन थे। यह सब कुछ कर्नाटक में मुख्यमंत्राी येदुयुरप्पा के कार्यकाल में हुआ। जब लोकायुक्त ने इस बात का खुलासा किया कि येदुयुरप्पा के दोनों पुत्रों ने उत्खनन कंपनियों से घूस लेकर उनका पक्ष लिया तो सशक्त जनविरोध् के चलते येदुयुरप्पा को मुख्यमंत्राी की कुर्सी और पार्टी छोड़नी पड़ी। लेकिन मजाक देखिये कि लोकसभा चुनाव आते-आते ‘भ्रष्टाचार के खिलापफ मुखर’ भाजपा ने येदुयुरप्पा समेत इस पूरे गिरोह को न सिपर्फ पार्टी में वापस लिया बल्कि चुनाव में टिकट भी दी।

 

यह स्पष्ट है कि मोदी माॅडल किसी भी प्रकार से मनमोहन माॅडल से अलग नहीं है, चाहे वह आर्थिक नीतियां हों या पिफर भ्रष्टाचार का मामला। तो पिफर इस दौर में मोदी ही काॅरपोरेट के चहेता क्यों बना हुआ है? देश के संसाधनों और खजानों की लूट ने राजनीति और काॅरपोरेट के गठजोड़ को बेऩकाब किया और इसके खि़लाप़फ जबर्दस्त जन असंतोष जगह जगह पूफट पड़ रहा है। ऐसे में मनमोहन का थका-हारा और बदनाम चेहरा जनता में तेजी से बढ़ते आव्रफोश को रोक नहीं सकता। इसलिए काॅर्पोरेट्स को एक नया चेहरा चाहिए जो, अमीरपरस्त नीतियों modified histऔर उनसे उपजे जनाव्रफोश से लोगों का ध्यान भटका सके। ठीक इसी बिन्दु पर नरेन्द्र मोदी काॅरर्पोरेट घरानों का सबसे लाडला हो जाता है,क्योंकि उनवेफ पास जनाव्रफोश को भटकाने वेफ लिए बढि़या हथवंफडा है: साम्प्रदायिक विचारधरा, त्ैै का सागंठनिक जाल तथा 2002 वेफ जनसंहार वेफ सि( रिकाॅर्डसे लैस मोदी अल्पसंख्यकों के खि़लाप़फ घृणा और हिंसा के काॅकटेल की गारंटी करता है जो लूट और दमन के शासन वेफ माॅडल को जारी रखने का आजमाया हुआ तरीका है। 2002 के बाद अमेरिका द्वारा प्रायोजित ‘इस्लामोपफोबिया’ से पफायदा उठाते हुए तथाकथित ‘आतंकवाद के खि़लाप़फ जंग’ के नाम पर पफर्जी मुठभेड़ों की एक पूरी श्रृंखला चलाकर मोदी ने एक ऐसे ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ नायक की छवि बनाई जो ‘मुस्लिम आतंकवादियों’ के निशाने पर है। ऐसी हर पफर्जी मुठभेड़ वेफ जरिये मोदी एक समुदाय वेफ लोगों को समाज और राष्ट्र के लिए एक ख़तरे के रूप में पेश करता है जिसे बार-बार अपने पुलिस बल की ताक़त से ख़तम करवेफ अपने आपको संकट मोचक नायक वेफ रूप में प्रोजेक्ट करता है।

आसान शब्दों में अगर कहा जाए तो नरेन्द्र मोदी का पूरा अभियान अल्पसंख्यक समुदायों को दुश्मन के रूप में प्रचारित करता है ताकि जनता के आव्रफोश को काॅर्पोरेट लूट और अमीरपरस्त नीतियों से भटकाकर अल्पसंख्यकों के खि़लाप़फ खड़ा किया जा सके। यह भी एक कारण है कि मोदी की सबसे करीबी मित्राता महाराष्ट्र के शिवसेना और मनसे जैसी ताक़तों के साथ है जो ग़रीब और दूसरे राज्यों से आए मज़दूरों और छात्रों के खि़लाप़फ हिंसा भड़काती है लेकिन उसी राज्य में हो रही काॅर्पोरेट लूट पाट और किसानों की आत्महत्याओं पर चूँ तक नहीं करती। इसीलिए सांप्रदायिक उन्माद पर खड़ी राजनीति, काॅर्पोरेट के लिए सबसे अध्कि पफायदेमंद साबित होती है। सांप्रदायिक हिंसा और घृणा पफैलाने वाले बयान या भाषण कोई गुजरे ज़माने की शर्मनाक चीज़ नहीं है, दरअसल यह शासन के ‘मोदी माॅडल’ की आंतरिक विशेषता है।

यह सच है कि हम नहीं चाहते कि ध्र्मनिरपेक्षता को लेकर वाजिब और ज़रूरी चिंताओं का दुरुपयोग कांग्रेस अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए करे। लेकिन ठीक उसी समय, हमें भाजपा और उसके सहयोगी दलों की साजिश को भी ध्वस्त करना होगा ताकि वह भ्रष्टाचार और काॅर्पोरेट लूट को लेकर उठ रहे जनाव्रफोश का पफायदा उठाकर भ्रष्ट और अमीरपरस्त नीतियों को ढंकने के लिए घृणा और दमन वेफ शासन को बढ़ावा न दे पाए।

आइये मोदी के सांप्रदायिक-काॅर्पोरेट पफासीवादी चेहरे को बेनकाब करें और करारी शिकस्त दें !

काॅरपोरेटपरस्ती और दमन के पर्याय कांग्रेस-संप्रग शासन को खारिज करें !

आइये वैकल्पिक नीतियों के लिए वोट करें महज़ चेहरे के बदलाव और मुखौटे को नकारें!!

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