महाराष्ट्र में बीएएमएस छात्रों के सवाल पर चल रहे आइसा आन्दोलन की रिपोर्ट


आयुर्वेदिक महाविद्यालय के शैक्षणिक वर्ष 2011-2012 के छात्रों को दूसरे आयुर्वेदिक महाविद्यालय में स्थानान्तरण के लिये संघर्ष

महाराष्ट्र में अधिकाँश शिक्षा और खासतौर से प्रोफेशनल कोर्सेस निजी संस्थाओं के हाथों में जा चुके हैं. अन्य पाठ्यक्रमों की तरह ‘बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी’ (बीएएमएस) की डिग्रियां भी कुछेक सरकारी कालेजों को छोड़कर निजी कालेजों द्वारा दी रही हैं. इनमें से कुछ एक कॉलेजों को छोड़ दिया जाये तो बाकी सभी इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज निजी मालिकों के हैं जो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं. इन कालेजों को मान्यता देने का काम आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ, नासिक व डीएमइआर (डारेक्टरेट ऑफ मेडिकल एडुकेशन एंड रिसर्च) करता है. कालेजों को मान्यता देने व ख़ारिज करने के इस खेल में आज प्रदेश के लगभग 1200 छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है. घूंसखोरी और लेन-देन के इस चक्कर में छात्र व अभिवावक पिस रहे हैं.

महाराष्ट्र सरकार द्वारा पारित निजी विश्वविद्यालय विधेयक भले ही एक साल पहले पारित किया गया हो लेकिन निजी विश्वविद्यालयों की निर्माण प्रक्रिया पिछले दशक से चल रही है. पूरे राज्य में निजी महाविद्यालयों की मंडियाँ खुल गई हैं जिसमें कचरे जैसी शिक्षा को सोने-चांदी के दाम पर बेचा जा रहा है. एक तरफ देश में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ शिक्षा क्षेत्र भी इससे दूर नहीं है. निजीकरण और औद्योगीकरण की चपेट में शिक्षा भी आ चुकी है. इस देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था का निर्माण इसी निजीकरण की नीति के आने से और तेज हो गया जिसमें गरीबों को एक तरह की और अमीरों के लिए दूसरे तरह की लेकिन बेहतरीन शिक्षा प्रणाली का विकास किया गया है. इन्हीं नीतियों के तहत प्रदेश के नामी-गिरामी शिक्षण संस्थाओं में धोखा-धड़ी के हजारों मामले दिन-ब-दिन सामने आ रहे हैं. पूरे राज्य में किसी भी जगह को देखिये वहां आपको निजी विश्विद्यालय का बाज़ार दिखाई देगा.

2011-2012 शैक्षणिक वर्ष के लिए 30 सितम्बर 2011 के नागपुर, औरंगाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद छात्रों ने महाराष्ट्र के विभिन्न आयुर्वेदिक कालेजों में बीएएमएस प्रथम वर्ष में नियमानुसार प्रवेश लिया था. आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ, नासिक द्वारा इस प्रवेश प्रक्रिया को नकारने के कारण महाराष्ट्र के लगभग 1200 छात्रों  का भविष्य बर्बाद होने के कगार पर है. हमारी सरकार से माँग है कि इन छात्रों को स्पेशल केस के तहत दूसरे महाविद्यालयों में स्थानांतरित कर इनके शैक्षणिक वर्ष को सुनिश्चित करें.

उच्च न्यायालय के 30 सितम्बर 2011 के आदेश के बाद आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ, नासिक व डीएमइआर (डारेक्टरेट ऑफ मेडिकल एडुकेशन एंड रिसर्च) की वेबसाइट पर आये हुए विज्ञापन के अनुसार विद्यापीठ द्वारा अधिसूचित महाराष्ट्र के 23 अर्धसरकारी व निजी आयुर्वेदिक कालेजों ने अतिरिक्त प्रवेश प्रक्रिया चलाई. हजारों छात्रों ने लाखों फीस देकर विद्यापीठ की वेबसाइट पर अधिसूचित इन कालेजों में दाखिला लिया. इन सभी 1200 छात्रों ने अपने-अपने कॉलेज में प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम पूर्ण किया. सम्बंधित कॉलेजों ने एक साल तक परीक्षा लेते हुए छात्रों की नियमित कक्षा चलाई लेकिन अचानक वार्षिक परीक्षा से पहले छात्रों के प्रवेश को आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ द्वारा यह कहते हुए नकार दिया गया कि सम्बंधित कालेजों में गुणवत्ता की कमी है! कालेज प्रशासन ने भी हाथ खड़े करते हुए छात्रों व उनके अभिभावकों को कोर्ट जाने को कह दिया गया. न्याय की आस में सभी छात्रों और अभिभावकों ने न्यायालय में यह प्रकरण दर्ज किया. पर 6 मार्च 2013 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी छात्रों को कोई राहत नहीं दी गयी. एक न्यायालय ने प्रवेश प्रक्रिया को मान्यता दी और एक साल बाद दूसरे न्यायालय ने उस प्रवेश प्रक्रिया को रद्द कर दिया.

इस प्रश्न को सुलझाने के क्रम में केन्द्रीय परिषद् (आयुष) विभाग प्रमुख और आरोग्य मंत्री मा. गुलाब नबी आज़ाद और साथ ही साथ महाराष्ट्र राज्य के आरोग्य मंत्री मा. विजय कुमार गावित को ज्ञापन सौंपा गया. सभी ने आश्वासन दिया कि वे छात्रों का साल ख़राब नहीं होने देंगे. किन्तु अब तक किसी भी मंत्री ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया.

कालेजों में त्रुटियाँ और अनियमितताएं हैं व गुणवत्ता की कमी है इत्यादि कारण देकर आरोग्य विद्यापीठ व केन्द्रीय समिति (आयुष) ने विद्यार्थियों के प्रवेश के एक साल बाद इन कालेजों में 2011-2012 की मान्यता रद्द कर दी. लेकिन ठीक छः महीने बाद इन्हीं कालेजों में 2012-2013 के शैक्षणिक सत्र की मान्यता दे दी! अब सवाल यह उठता है कि यदि कालेजों में गुणवत्ता की कमी व अनियमितताएं थीं तो  कालेजों ने छः महीने में इसे अचानक कैसे पूरा किया? यदि ये कालेज 2012-2013 के सत्र में प्रवेश लेने वाले छात्रों के लिए योग्य हैं, तब वही कालेज सत्र 2011-2012 के छात्रों के लिए अयोग्य कैसे हो सकते हैं? दरअसल यह हर साल कॉलेज को मान्यता देने और मान्यता रद्द कर देने का खेल है. कभी कॉलेज योग्य व् परिपूर्ण पाये जाते हैं और कभी (भ्रष्टाचारियों के हिसाब से अर्थपूर्ण व्यवहार न होने के कारण) अयोग्य ठहरा दिए जाते हैं.

हर साल प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने के पहले सम्बंधित महाविद्यालयों को मान्यता देने अथवा नकारने की प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया जाता? केन्द्रीय परिषद् (आयुष) विभाग, डीइएमआर और आरोग्य  विद्यापीठ प्रशासन समय रहते ध्यान दिया होता तो छात्रों का शैक्षणिक समय व धन बच जाता.

प्रवेश देने वाले सम्बंधित महाविद्यालयों को इन सब चीजों की पूर्ण जानकारी होती है वे यह बात अभिभावकों से छुपाते है. अब तक इसी तरह से ये दुकाने चलती आयी हैं. इस वर्ष हजारों विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद हो रहा है.

20-21 मार्च 2013 से आइसा के नेतृत्व में आयुर्वेद (बीएएमएस) के छात्रों के साथ आज़ाद मैदान मुंबई में अनिश्चित कालीन धरना आन्दोलन किया गया जिसमें सैकड़ों छात्रों की भागीदारी रही. इससे पहले भी शीतकालीन अधिवेशन के दौरान छात्रों द्वारा आन्दोलन किया गया था जिसमें वैदकीय शिक्षण मंत्री विजय कुमार गावीत से आइसा के पदाधिकारियों सहित बीएएमएस छात्रों की बात-चीत हुई थी लेकिन सरकार का रवैया नकारात्मक रहा.

किसी भी तरह के ठोस आश्वासन न मिलने की वजह से 8 अप्रैल 2013 को आजाद मैदान में धरना शुरू करने का निर्णय लिया गया. जिसकी तैयारी में प्रभावित कालेजों के प्रतिनिधियों ने आइसा के राज्य अध्यक्ष फैयाज़ इनामदार तथा राज्य उपाध्यक्ष अभिलाषा की उपस्थिति में भाग लिया और आन्दोलन की दिशा तय की. 9 अप्रैल 213 को मनोरो, आकाशवाणी व मैजेस्टिक के करीब विधायक निवास  के सामने महाराष्ट्र के आमदारों के खिलाफ आन्दोलन आइसा और एआईएसएफ के नेतृत्व में किया गया. छात्रों ने मुख्यमंत्री को चार बार घेरा और उन्हें विवश किया कि वे केंद्र से इस विषय पर तत्काल निर्णय हेतु केंद्रीय आरोग्य व कुटुंब कल्याण मंत्री गुलामनबी आजाद को पत्र लिखें.

इस आंदोलन के चलते विधान परिषद में विधायक शरद पाटिल ने 16 अप्रैल 2013 को सवाल उठाते हुए कहा कि “इन छात्रों का प्रवेश लेने वाले वाली संस्थाएं इस सभागृह में बैठे हुए कई मंत्री व सदस्यों की हैं. इन छात्रों को 23 मई 2013 से ली जाने वाली महाराष्ट्र आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ की परीक्षा में बैठने की अनुमति देते हुए न्याय दिया जाये”.

इसके बाद आइसा की ओर से मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान से विधान परिषद के विधायक शरद पाटिल की उपस्थिति में चर्चा हुई. जिसके तहत मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने आरोग्य मंत्री गुलामनबी आजाद को पत्र लिखा.

इसी बीच यवतमाल ग्राहक न्यायालय ने महाराष्ट्र आरोग्य विज्ञान विद्यापीठ, नासिक को  इन आयुर्वेद महाविद्यालयों की परीक्षा 23 मई 2013 तक लेने का आदेश दिया है फिर भी इन विद्यार्थियों को परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया.

इस परिस्थिति में  10 जुलाई 2013 से आइसा तथा ए.आई.एस.एफ. के नेतृत्व में आन्दोलन आज़ाद मैदान में फिर शुरू हुआ. लेकिन सरकार द्वारा कोई भी प्रतिक्रिया न होने के कारण आइसा ने मंत्रियों की राह देखने के बजाय सीधा विधान भवन में घुसने का निर्णय लिया. 15 जुलाई को तकरीबन 12 बजे सैकड़ों की गोलबंदी के साथ विधान भवन में धड़ल्ले के साथ घुसने का प्रयास किया. जिसमें पुलिस के साथ 20 मिनट तक मुठभेड़ हुई, और हमारे तीन साथी घायल हुए.

छात्रों के मिजाज को देखते हुए सरकार ने चर्चा करने का निर्णय लिया. शाम को तकरीबन 4 बजे छात्रों-अभिभावकों व दोनों संगठन के प्रमुख पदाधिकारी के साथ आरोग्य मंत्री विजय कुमार गावित तथा विधान परिषद के विधायक शरद पाटिल के साथ बातचीत में कहा गया कि इस पूरे मामले में छात्रों का कोई भी दोष न होते हुए भी उन्हें क्यों झेलना पड़ रहा है. जबकि ये पूरा मामला संस्था के चालकों द्वारा छात्रों के साथ धोखाधड़ी का है. साथ ही सरकार की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैये के चलते हज़ारों छात्रों के भविष्य को बर्बाद हो रहा है. सब जानते हैं कि यह मसला राज्य सरकार के स्तर पर सुलझाकर इन छात्रों को दूसरे मान्यताप्राप्त कालेजों में स्थानांतरित किया जा सकता है. पर सरकार इस पर निर्णय लेने के प्रति गंभीर नहीं है.

आंदोलन के दबाव में सरकार ने एक कमेटी का गठन करने का निर्णय लिया है जिसमें आयुष व  डीएमइआर से एक प्रतिनिधि, दो छात्र, एक अभिभावक व दोनों छात्र संगठनों के प्रतिनिधि एवं मुख्यमंत्री सहित आरोग्य मंत्री विजयकुमार गावित स्वयं उपस्थित रहकर इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे.

सरकार पर इस दबाव को जारी रखने की जरूरत को महसूस करते हुए और सरकार द्वारा कमेटी गठित होने तथा मुद्दे के निष्कर्ष तक धरना-प्रदर्शन जारी रखने का आइसा द्वारा निर्णय लिया गया है. संगठन ने स्पष्ट कहा है कि छात्रों को न्याय मिलने और उनको नियमित किये जाने तक यह आन्दोलन इसी तरह से और तीव्र गति से जारी रहेगा.

इन्क़लाब जिंदाबाद!

छात्र-एकता जिंदाबाद!!

 

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