किसान मुक्ति मार्च में शामिल हों

29-30 नवम्बर दिल्ली चलो!

AIKSSC march
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2014 के चुनावों से पहले मोदी सरकार ने किसानों की पूर्ण कर्ज माफी और खेती की सम्‍पूर्ण लागत के ऊपर 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़ कर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य देने का वायदा किया था. भारी कृषि संकट और किसान आत्‍महत्‍याओं से पूरा देश परेशान था तब अनेकों लोक-लुभावन वायदे कर मोदी सरकार ने बहुमत पा लिया. लेकिन देश के किसानों को इस सरकार ने और ज्‍यादा संकट में डाल दिया है. अब यह सरकार सारी नीतियां किसानों के खिलाफ बना रही है, लगातार झूठ बोल रही है और यहां तक कि किसानों को अपमानित भी कर रही है.

सम्‍पूर्ण कर्ज माफी का झूठा वायदा किया – किसानों पर कर्ज का बोझ और बढ़ा दिया

Yogi gives Re 1 as loan waiver

पिछले साढ़े चार सालों में गहराते कृषि संकट ने किसानों की विपत्तियों को और बढ़ा दिया है. वहीं अपनी मांगों को उठाने वाले किसानों पर मोदी सरकार ने दमन बढ़ा दिया है. पिछले साल मंदसौर में कर्ज माफी मांग रहे किसानों पर गोली चलवा दी. बीच-बीच में सरकार कर्ज माफी की घोषणाएं भी करती रही, लेकिन पूरा कर्जा कभी माफ नहीं किया.

किसानों के सम्‍पूर्ण कर्ज की तत्‍काल माफी देश के विकास के लिए बेहद जरूरी है. यह भी सोचना जरूरी है कि किसानों को कर्ज लेने पर आखिर मजबूर किसने किया ?

खेती का लागत मूल्‍य इतना कैसे बढ़ गया ? क्‍योंकि सरकार ने ऐसी नीतियां बनायीं जिनसे कॉरपोरेट कम्‍पनियों की जेब में किसान की मेहनत का सारा पैसा अपने आप चला जाय. कैमिकल पेस्टिसाइड और रसायनिक खाद, दवाई आदि पर खेती पूरी तरह निर्भर बन गई है, और इन्‍हें खरीदने के रास्‍ते किसान का मुनाफा कम्‍पनियों की जेब में चला जाता है. किसान के हाथ खाली हो जाते हैं और अगली फसल के लिए फिर कर्ज लेना पड़ता है.

ऊपर से जीएसटी लाकर और डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ा सरकार ने कृषि लागत को और बढ़ा दिया है.

किसानों के लिए जारी लोन कम्‍पनियों की जेब में कैसे चले गये ?

Agriculural loan healdine

सरकारी बैंकों ने किसानों को देने के लिए लोन जारी किये, लेकिन 2016 की एक आर.टी.आई. सूचना में पता चला कि उसमें से 58,561 करोड़ रुपये केवल 615 खातों में भेज दिये गये. यदि ये 615 खाते किसानों के थे तो इस हिसाब से प्रति किसान 95 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया. पता चला कि वे किसान नहीं, कृषि क्षेत्र में व्‍यापार करने वाली अंबानी की ‘रिलायंस फ्रेश’ जैसी बड़ी बड़ी कम्‍पनियां हैं जो किसानों के नाम पर पास किये गये लोन को खा गईं.

फिर भारत में छोटे और सीमांत किसान ही सबसे ज्‍यादा हैं और उनको तो वैसे भी बैंके व अन्‍य संस्‍थायें कर्ज देती ही कहां हैं !

किसान आज भी आत्‍महत्‍यायें करने को मजबूर हैं; लेकिन सरकार झूठे आंकड़े पेश कर रही है

Non publishing of farmer suicide data

कर्ज में डूबे मजबूर किसान आज भी सभी राज्‍यों में आत्‍महत्‍यायें करने को विवश हैं. एन.सी.आर.बी. के आंकड़े बताते हैं कि 1995 से 2015 के बीच 3 लाख से ज्‍यादा किसान आत्‍महत्‍यायें हुईं. सच्‍चाई यह है कि मोदी राज में किसान आत्‍महत्‍यायें बढ़ गई हैं. दिल्‍ली में संसद मार्ग पर आपने साथी किसानों के कंकालों के साथ तमिलनाडु के किसानों के विरोध प्रदर्शनों को तो पूरे देश ने देखा था.

किसानों को संकट से उबारने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जगह मोदी सरकार आत्‍महत्‍या के आंकड़ों से छेड़छाड़ कर रही है. इस सरकार ने पिछले दो सालों में हुई किसान आत्‍महत्‍याओं के आंकड़ों को जारी नहीं किया है. 2016 के बाद एन.सी.आर.बी. ने किसानों की आत्‍महत्‍याओं को गिनने का तरीका बदल दिया गया है, इस प्रकार आंकड़े बदल कर सरकार समझती है कि वह पूरे देश को मूर्ख बना लेगी !

खेती की सम्‍पूर्ण लागत के ऊपर 50 प्रतिशत मुनाफा देने का वायदा झूठा निकला

Crop Insurance Scheme headline

सम्‍पूर्ण लागत के ऊपर पचास प्रतिशत मुनाफा की गारंटी की स्‍वामीनाथन आयोग की सिफारिश (यानी सी-2+50% मूल्‍य देने की, जिसमें किसान की अपनी मेहनत का मूल्‍य एवं कृषि भूमि का किराया भी शामिल है) पर सिर्फ झूठ बोला गया, और कुछ नहीं हुआ. उल्‍टे पिछले चार सालों में एम.एस.पी. लगभग न के बराबर बढ़ी. इस साल सरकार ने खरीद मूल्‍य बढ़ाने की घोषणा की, लेकिन वह भी ए-2+एफ.एल. के फार्मूले से बढ़ाई जोकि लागत पर पचास प्रतिशत मुनाफे से कोसों दूर है. बेशर्मी तो देखिये, किसानों के साथ खुलेआम धोखाधड़ी करके यह सरकार दावा कर रही है कि उसने एम.एस.पी. में ‘ऐतिहासिक’ वृद्धि कर दी है !

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक धोखाधड़ी

किसानों को लूटने के लिए मोदी सरकार ने फसल बीमा योजना बनायी. जनवरी 2016 में इस योजना को लाते समय सरकार ने कहा था कि ‘इससे किसानों का जीवन पूरी तरह बदल जायगा’.

जरा गौर कीजिये. इस योजना के जरिये किसानों को कुछ नहीं मिला लेकिन बीमा कम्‍पनियों की जेब में अरबों रुपये चले गये. यही नहीं, बीमा की प्रीमियम राशि साढ़े तीन गुना बढ़ गई जिससे कम्‍पनियों को घर बैठे अपार मुनाफा मिल रहा है. फसल नुकसान होने पर ज्‍यादातर किसानों को क्‍लेम नहीं दिया गया. इन बीमा कम्‍पनियों ने 47,408 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा कर लिया और केवल 31,613 करोड़ रुपये के बीमा क्‍लेम जारी किये. बाकी राशि खा गये. इस योजना से किसान इतने निराश हैं कि भाजपा की सरकारों वाले 4 राज्‍यों में ही एक साल के अंदर कुल 84 लाख किसान इस योजना से खुद बाहर हो गये हैं.

नोटबंदी और जीएसटी ने किसानों की कमर तोड़ दी

नोटबंदी के बाद किसानों के लिए फसल बेच पाना ही मुश्किल हो गया. अपनी गलती मान लेने की जगह सरकार आज भी नोटबंदी को एक ‘महान कदम’ बता रही है, किसानों को इसके कारण जो घाटा हुआ उसकी भरपाई करने का तो नाम भी नहीं ले रही. जीएसटी आने के बाद खेती की लागत सामग्री का मूल्‍य बढ़ गया है. सरकारी नीतियों के चलते पहले से ही घाटे में हो रही खेती को नोटबंदी और जीएसटी ने और बरबाद कर दिया.

गौरक्षकों का आतंक और पशुधन बिक्री पर रोक ने किसानों की हालत और बिगाड़ दी

एक ओर भाजपा ने गौरक्षा के नाम पर साम्‍प्रदायिक नफरत का जहर फैला कर पहलू खान जैसे कई निर्दोष नागरिकों की हत्‍यायें करवा दीं, दूसरी ओर पशुधन की बिक्री पर लगी रोक के कारण किसानों का घाटा काफी बढ़ता जा रहा है. किसानों व आम जनता के साथ हुई वायदाखिलाफी से ध्‍यान बंटाने के लिए साम्‍प्रदायिक उन्‍माद भड़काना भाजपा की पुरानी चाल है, इससे किसानों के जीवन और आजीविका दोनों पर खतरा बढ़ गया है.

विरोध प्रदर्शनों का बर्बर दमन और किसानों को अपमानित करना भाजपा की नीति है

Farmers shot dead in MP headline

किसानों को राहत देने की जगह मोदी सरकार ने ठान लिया है कि जब भी किसान भाजपा से चुनावी वायदे पूरे करने की मांग करेंगे, उनका दमन किया जायेगा. पिछले साल मध्‍य प्रदेश के मंदसौर में किसान हड़ताल के दौरान पांच किसानों को गोली मार दी गई. इसी साल दिल्‍ली आ रहे हजारों शांतिपूर्ण किसानों को बॉर्डर पर ही रोक कर उन पर लाठीचार्ज, आंसू गैस और वाटर कैनन से हमला किया गया. 

Kisan Rally Headline

मंदसौर में किसानों पर गोली चलने के बाद जब केन्‍द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से पूछा गया तो जवाब देने की बजाय बड़ी बेशर्मी से उन्‍होंने कहा कि ‘योगा कीजिए’. भाजपा नेता वैंकय्या नायडू जो आज देश के उपराष्‍ट्रपति हैं, जब 2017 में केन्‍द्र में शहरी विकास मंत्री थे तब उन्‍होंने बयान दिया था कि ‘किसानों की कर्ज माफी तो आजकल फैशन बन गया है’. ऐसे भाजपा नेताओं और मंत्रियों की कमी नहीं है जो बार बार संकट में डूबे किसानों का मजाक उड़ाते रहते हैं.

  • आज किसानों के लिए सम्‍पूर्ण कर्ज माफी ही जरूरी नहीं है, बल्कि उन नीतियों को भी तत्‍काल बदलने की जरूरत है जो किसानों को कर्ज के दुष्‍चक्र में फंसा रही हैं.
  • किसानों को हर हाल में सी-2+50% के फार्मूला से न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य देना होगा
  • तय समर्थन मूल्‍य पर फसल खरीद की गारंटी करने की राजनीतिक इच्‍छा शक्ति सरकार को दिखानी होगी. किसानों की फसल को बाजार के आढ़तियों की मनमर्जी पर छोड़ने की नीति सरकार को बंद करनी होगी.
  • कृषि लागत सामग्री की कीमतें कम करना और कृषि सब्सिडी बढ़ाना बेहद जरूरी है.
  • खेती को अमीरों के कब्‍जे से मुक्‍त कराना होगा. तभी हम अपनी खेती-किसानी और पर्यावरण दोनों की हिफाजत कर पायेंगे. किसानों को भारी लागत मूल्‍यों और उनके पैसे व मुनाफे को कारपोरेट धनाड्यों की जेबों में भेजने वाली नीतियों से बचाना होगा.
  • आइये, 29-30 नवम्‍बर को हम भी अपने किसानों के साथ कदम से कदम मिला कर मार्च करें
  • घाटे की खेती, आत्महत्या को मजबूर किसान – ऐसा देश और ऐसी सरकार हमें मंजूर नहीं ।

Translated from article in cpiml.net

admin

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