आरा में दलित छात्रावासों पर हमले की अनदेखी और जूझते छात्र

                                                                                                                                                                                                                                                                       -सरोज कुमार-
ब्रह्मेश्वर मुखिया अपने ही बनाए चक्रव्यूह का शिकार हुआ है। जिन लोगों पर उंगलियां उठ रही हैं और जो गिरफ्तार किए जा रहे हैं वे सब उसी सामंतवादी चक्रव्यूह के हिस्से हैं। वहीं दलितों-पिछड़ों के लिए भी यह कम महत्वपूर्ण समय नहीं है। इन्हें सामंतवादी ताकतों, सत्ता, प्रशासन और विपक्ष को समझते हुए अपनी भूमिका तय करनी चाहिए।


मुखिया
 के मारे जाने वाले दिन (1जून को) ही मुखिया समर्थक सामंती ताकतों ने आरा के कतिरा स्थित दलित छात्रावास पर हमला कर आग लगा दिया था। देश भर में आरा शहर का कतिरा मुहल्ला चर्चा में रहा। मीडिया से लेकर सरकार, विपक्ष सबका ध्यान कतिरा स्थित मुखिया के घर पर ही है।मुखिया को लेकर अखबारों ने बकायदा पुलिस के सामानंतर इंवेस्टीगेशन चालू कर रखा था। यहां तक कि उसके भोज में क्या-क्या पकवान बन रहे थे, इस तरह की खबरें सचित्र प्रकाशित हुईं। दूसरी तरफ दलित छात्रों और छात्रावास पर किसी ने ध्यान तक नहीं दिया।

छात्रावास में तोड़ दी गई आंबेडकर कि मूर्ती

कतिरा में सिर्फ ब्रह्मेश्वर का घर नहीं है

स्टेशन के थोड़ी ही दूर से कतिरा शुरु होता है। पक्के भव्य मकान औऱ पांडेय, शर्मा, श्रीवास्तव जैसे नामों के नेमप्लेट देखते ही अंदाजा हो जाता है कि मुहल्ला किन लोगों का है। एक पुराने पत्रकार बताते हैं कि 70 के दशक में जब देहातों में दलितों-पिछड़ों ने प्रतिरोध किया था तो सामंतवादी ताकतों ने कतिरा में बसना शुरु किया था। इसी कतिरा में है ब्रह्मेश्वर का घर। मीडिया में सिर्फ उसके घर की चर्चा रही, लेकिन सिर्फ उसका घर ही नहीं बल्कि इसी कतिरा में है राजकीय कल्याण दलित छात्रावास भी। ब्रह्मेश्वर मुखिया के घर से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर। हमले के बाद से अभी तक यहां का डर गया नहीं है। इसका साफ असर अब भी दिखाई पड़ रहा है। छात्रावास में जहां करीब 300 छात्र रहते हैं वहींडर के कारण मुठ्ठी-भर छात्र ही अभी मौजूद हैं।इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि यह अगड़ी जातियों का कस्बा है और कतिरा के बीच में सिर्फ यह छात्रावास ही दलितों का है। मुखिया के मारे जाने वाले दिन हमले का शिकार भी इसी कारण हुआ था यह। इसी छात्रावास के छात्र राजू रंजन ने बताया,“वे अभी सो कर उठे ही थे कि सुबह करीब 7.30 बजे सामंतवादियों ने हमला कर दिया। छात्र संभल भी पाते कि उन्हें मारा पीटा जाने लगा और कमरों में आग लगाना शुरु कर दिया। डरकर छात्र जान बचाने इधर-उधर भागने लगे”। करीब 17 कमरे बुरी तरह से जला दिए गए हैं और कईयों में भीषण तोड़-फोड़ किया गया। ताला तोड़कर जरुरत के सामान या तो जला दिए गए या फिर लूट लिए गए। साईकिल से लेकर किताबें, कपड़े और प्रमाणपत्र तक फूंक दिए गए। यह हमला सिर्फ उपद्रव भर नहीं है। यह उस सामंतवादी सोच का नतीजा था जो सदियों से बोया हुआ है। उपद्रवियों ने जानबूझ कर इसे निशाना बनाया था। आखिर क्या कारण था कि छात्रावास के आसपास की दुकानें छोड़ दी गई। और तो और छात्रावास में ही एक पंप-हाउस है जिसे थोड़ा-सा भी नुकसान नहीं पहुंचाया गया, क्योंकि इस पंप-हाउस से बाहर के घरों में भी पानी सप्लाई होता है। तो उपद्रवियों का मकसद सिर्फ छात्रावास को नुकसान पहुंचाना था।
इस सामंतवादी सोच का पता इसी बात से चलता है कि छात्रों के पास मौजूद अंबेडकर की मूर्ति और तस्वीरों को भी हमलावारों ने निशाना बनाया। छात्रावास का छात्र-प्रधान विकास पासवान अपने कमरे में अंबेडकर की मूर्ति रखता है। छात्र इस मूर्ति की पूजा अंबेडकर जयंती को किया करते हैं।हमलावारों ने कमरे का ताला तोड़ उसे जलाने के साथ ही उस मूर्ति को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। वहीं छात्र शिवप्रकाश रंजनबताता है कि उसके कमरे की अंबेडकर की तस्वीरें फाड़ी और जला दी गई।
अपना होस्टल दिखाते छात्र
वहीं दूसरी ओर उपद्रवियों ने छात्रावास के अलावा स्टेशन की ओर भी तकरीबन उन्हीं फुटपाथी दुकानों को निशाना बनाया जो गरीबों-पिछड़ों के थे। इन चीजों से साफ होता है कि यह हमला सिर्फ उपद्रव-भर न होकर पूरी तरह से सोचा-समझा सामंतवादी हमला था।

नीतीश के सुशासन का डंडा किसके लिए है
इस पूरे प्रकरण में प्रशासन सिर्फ मूकदर्शक ही नहीं बल्कि एक तरफा बना रहा। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इस छात्रावास में दिन भर में तीन बार हमला हुआ और प्रशासन रोक नहीं पाया। छात्र राकेश कुमार ने बताया, “हमले के दौरान पुलिस वाले मौजूद थे लेकिन कोई उन्हें रोक नहीं रहा था। पहला हमला 7.30 बजे हुआ फिर दुबारा भी हमला किया गया।उस समय जो छात्र छात्रावास में छिपे हुए थे, पुलिसवालों ने उन्हें पीछे की दीवार कूद कर भागने कहा। मजबूरन छात्रों को बचने के लिए दीवार कूद कर भागना पड़ा”।हमले के तीन दिन बाद 4 जून छात्र डिस्ट्रीक वेलफेयर अफसर  को जब कुछ छात्र वहां जाते हैं तो वह कुछ नहीं कहता। उसी दिन फिर छात्र अपने सामान देखने पहुंचते हैं।छात्र शब्बीर कुमारने बताया कि पुलिस ने उल्टा उन्हें ही धमका कर भगा दिया। छात्रों को आरोप है कि दो छात्रों को पुलिस मारती भी है और वहां तैनात मजिस्ट्रेट जो कि मुखिया की जाति का ही है उसने उन्हें भगाने के साथ-साथ कहा,“साले, सरकार का फ्री का खाते हो, भागो यहां से”।
प्रशासन ने छात्रावास पर हमले के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। दोषियों को चिन्हित करने का काम नहीं किया गया। 18 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस ने अपनी तरफ से एफआईआर तक दर्ज नहीं की। छात्रों ने अपनी ओर से ही एफआईआर दर्ज किया है। 18 तारीख को ही छात्रों ने डीएम का घेराव किया। डीएम ने इनसे मिलना तक मुनासिब नहीं समझा। वो मिलने से बचती रही और अन्य बड़े अधिकारी भी नहीं आ रहे थे। छात्रों ने भारी दबाव बनाया और डीएम ऑफिस को कुछ देर के लिए तालाबंदी कर दी। तब जाकर 19 तारीख को डीएम ने मिलने का समय दिया और दोषियों को चिन्हित करने का आश्वासन दिया है। लेकिन यह महज दिखावा मालूम पड़ता है। मुखिया के भोज के एक दिन पहले खाना बनाने वाले कुछ सीलिंडरों में आग लगने के बाद डीएम ने तत्काल 8 लाख रुपए मुआवजा घोषित कर दिया था। वहीं दलित छात्रों के लिए कोई मुआवजा घोषित नहीं किया था। घेराव के बाद ही छात्रों की बर्बाद हुए साइकिलों और सामानों का लिस्ट प्रशासन ने मांगा। आखिर इनके लिए इतनी देरी क्यों। यह दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है।
प्रदर्शन करते छात्र
छात्रों ने बकायदा उपद्रवियों की पहचान बताई है और जदयू-भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाया है। छात्र हमले के वक्त मौजूद थे तो वे सामंती उपद्रवियों को पहचान रहे हैं। लेकिन जिस तरह सत्ता से जुड़े लोगों की भूमिका बताई जा रही है और जैसा प्रशासन का रवैया है नहीं लगता कि दोषियों को पकड़ा जाएगा।

नीतीश कुमार के सुशासन का डंडा सामंतवादियों को देख शांत हो जाता है, यह तो पटना में 2 जून को ब्रह्मेश्वर की शवयात्रा के दौरान दिखा ही था। वहीं दूसरी तरफ 20 जून को करीब सौ दलित छात्र पटना आकर प्रदर्शन कर रहे थे तो भारी पुलिस फोर्स के साथ बल प्रयोग कर उन्हें रोका गया और सभी को गिरफ्तार कर कोतवाली थाने में ले जाया गया। ध्यान रहे ये वही पुलिस है जो मुखिया के शवयात्रा के दौरान सामंतवादियों को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया था।

कल्याण मंत्री को नहीं मालूम कि दलित छात्रावासों पर हमला भी हुआ था

छात्रों के दबाव बनाने पर उनकी ओर से छह सदस्यीय टीम बना कल्याण मंत्री जीतन राम मांझी से मिलने  को कहा जाता है। हद तो यह हो जाती है जब कल्याण मंत्री छात्रों से ये कहते हैं कि उन्हें पता ही नहीं,दलित छात्रावास पर हमला हुआ है। आखिर सरकार कहां सोई थी अब तक?इन छात्रवासों की देख-रेख करने वाला कल्याण विभाग कहां था? टीम में शामिल छात्र शिवप्रकाश रंजन कहते हैं, “कल्याण मंत्री ने अब एक जांच टीम बना भेजने का आश्वासन दिया है। लेकिन वे बार-बार यहीं कहते रहे कि उन्हें छात्रावास पर हमले की जानकारी नहीं है”।मतलब साफ है कि संबंधित अधिकारियों ने दलित छात्रों के मामले में उदासीनता बरती। जिस तरह से इसको लेकर सरकार का रवैया रहा, नहीं लगता है दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। ऊपर से तब जब सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं पर छात्र आरोप लगा रहे हैं।
आरा के दलित छात्रों के मामले में नीतीश कुछ नहीं कह रहे। मुखिया के मारे जाने की तुरंत एसआइटी जांच और फिर परिजनों की मांग पर सीबीआई जांच की घोषणा हो जाती है। नीतीश सधी हुई भाषा में ही सही मुखिया के बारे में राय देते रहे। मारनेवालों की जल्द गिरफ्तारी की बात कही। वहीं दलित छात्रों की सुध तक उन्होंने नहीं ली। आखिर उनका सुशासन किनके लिए है?
प्रदर्शन करते छात्र

दलितों के रहनुमा कहाँ गए

सत्ता में कौन लोग बैठे हैं, ये तो मुखिया की मौत के साथ ही तय हो गया था। मुखिया को गांधीवादी कहने वाले लोगों को दलित छात्रों का ध्यान भला कैसे आएगा। साथ ही विपक्षी पार्टियों की भी असलियत जाहिर हुई है। ये वहीं पार्टियां हैं जो खुद को दलितों का हितैषी घोषित करती रहती हैं। मुखिया को बड़ा आदमी बताने वाले बड़े-बड़े विपक्षी नेताओं ने भी दलित छात्रों का हालचाल लेना जरुरी नहीं समझा।
मुखिया की मौत की सीबीआई जांच की मांग करने वाला विपक्ष दलित-छात्रों पर हमले की स्थानीय जांच को लेकर भी कुछ कहता नजर नहीं आया, दोषियों की गिरफ्तारी की तो बात दूर ही है। जदयू-भाजपा का तो समझ आता ही है पर लालू यादव और रामविलास पासवान जो दलितों और पिछड़ों के मसीहा बनने का दावा करते हैं, क्यों नहीं कोई पहल की इन्होंने।
वहीं दूसरी ओर मुखिया के भोज में वामपंथी पार्टी को छोड़ सभी पार्टी के नेता शामिल हुए। जदयू-भाजपा के तो तय थे ही, राजद, कांग्रेस और लोजपा के नेता भी भोज की शोभा बढ़ा रहे थे।
मुखिया के समर्थकों के हमले और प्रशासन, सरकार से लेकर अन्य दलों के रुख ने स्पष्ट किया कि दलित-प्रेम का इनका दावा महज ढोंग रहता है। सरकार और विपक्ष तो सामंतवादियों के साथ है। सामंतवादियों और प्रभावशाली लोगों की सुरक्षा से पुलिस को फुर्सत मिलती ही नहीं।
हमले के दिन सामंतवादियों ने दलित छात्रावास के अलावे कतिरा कस्बे के बाहर भी हमले की कोशिश की थी। लेकिन कतिरा के दायरे के बाहर के इलाकों में पिछड़ों और दलितों की बाहुल्यता होने के कारण वे सफल नहीं हो पाए। पकड़ी मुहल्ला, करमन टोला, महाराजा कॉलेज के आसपास का मुहल्ला, नवादा चौक और फिर दलितों के बस्ती जवाहर टोला और बहिरो टोला, इस ओर उपद्रवी हमला नहीं कर सके। ऐसा नहीं कि वे चाहते नहीं थे। स्टेशन की ओर से वे आगे हमला करने बढ़े भी थे पर पिछड़ों-दलितों के प्रतिरोध के कारण वे वापस हो लिए। यही कारण है कि मौलाबाग का दलित-छात्रावास भी बचा रह गया। उपद्रवी वहां बाइक पर बैठ फायरिंग जरुर करने आए पर छात्रावास में हमला नहीं कर पाए थे। फिर भी सारे जगहों में तनाव तो था ही। नवादा थाने के पास मुहल्ले के कुछ पिछड़े-दलित परिवार उस रात जवाहर टोला और बहिरो चले गए थे। अंबेडकर नगर के कुछ लोग भी दूसरे टोलों में चले गए थे।
कतिरा छात्रावास की दिक्कत यही रही की यह कतिरा के अंदर है। इसलिए इसकी सुरक्षा पर ध्यान देना जरुरी बन पड़ता है। छात्र भी इसीकारण चिंतित हैं। दहशत के कारण छात्र आ नहीं रहे हैं। ये तो गनीमत है कि मुखिया को उन्हीं सामंतवादी ताकतों ने मारा है और ये बात सबको पता चल चुकी है वरना स्थितियां और खराब रहती।
इन तमाम स्थितियों और प्रशासनिक की निष्क्रियता के बावजूद दलित छात्रों ने आरा में अधिकारियों का घेराव करने के साथ ही पटना तक प्रदर्शन किया जो उनकी चेतना को दर्शाता है। वे जानते हैं कि प्रशासन पर दबाव बनाए बगैर उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला। यही वह चेतना है जो उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सचेत और सुरक्षित रख सकती है। सत्ता और सत्ता के खेल को समझते हुए ही दलित अपनी भूमिका तय कर सकते हैं। जबकि उनके हितैषी होने का दावा करने वाली पार्टियां और सत्ता सामंतवादियों के सामने झुकी हुई हैं।

दलित छात्र और छात्रावासों की बदहाली का भी एक अलग किस्सा है

आरा में जहां इंग्लिश स्पोकेन से लेकर इंजीनियरिंग के कोचिंग खुलते जा रहे हैं। साधन-संपन्न छात्र कोचिंग करने पटना- दिल्ली चले जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर गरीब दलित छात्र भी हैं जो तमाम तरह की कठिनाइयों से जूझते हुए, साधन-संपन्न न होने के कारण आरा जैसे छोटे शहर के छात्रावास में रह कर ही पढ़ाई कर रहे हैं। ये वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध कॉलेजों जैसे महाराजा कॉलेज, ब्रह्मर्षि कॉलेज, जैन कॉलेज के छात्र हैं जो आरा के देहाती क्षेत्रों के अलावे भोजपुरी क्षेत्र के अन्य जिलों, बक्सर से लेकर रोहतास तक के गांवों से आते हैं। तकरीबन सारे छात्र मजदूर परिवारों से आते हैं। ये छात्र किसी भी तरह कुछ काम करते या ट्यूशन पढ़ाते अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं।दलित छात्रावासों की खराब हालत भी किसी से छिपी नहीं है। आरा में तीन दलित छात्रवास हैं। सबकी हालत ठीक नहीं। कतिरा छात्रावास में करीब 300 छात्रों के लिए सिर्फ तीन चापाकल हैं। बाथरुम है ही नहीं। मौलाबाग के दलित छात्रावास में ट्वायलेट तक की सही सुविधा नहीं है।वहीं चांदी का दलित छात्रावास किराए के जर्जर मकान में चलता है। ट्रेन गुजरते ही दीवारें हिलने लगती हैं। जान जोखिम में डाल कर छात्र इसमें रह रहे हैं। बुनियादी सुविधाएं भी छात्रावासों में सही से मौजूद नहीं।फिर भी जितनी भी सुविधा मिल पा रही है उसी से ये छात्र अपना भविष्य संवारना चाहते हैं। उनमें एक चेतना मौजूद है। लेकिन वहीं दूसरी ओर सामंतवादी ताकतें ये देख नहीं पा रही हैं।

सरोज युवा पत्रकार हैं. पत्रकारिता की आईआईएमसी से. अभी पटना में एक दैनिक अखबार में काम . इनसे krsaroj989@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है

Courtesy: Patrakar Praxis

admin

5 thoughts on “आरा में दलित छात्रावासों पर हमले की अनदेखी और जूझते छात्र

  1. बाबासाहेब के कार्टून पर इतना विवाद मचता है. पासवान से लेकर मायावती सब बहती गंगा में हाथ धोने के लिए होड करते हैं पर उनमें से किसी को आरा के दलित होस्टल में जलाये गये, अपमानित किये गये बाबासाहेब नहीं दिखते हैं! क्या पासवान और मायावती के जैसों के अम्बेडकर दूसरे हैं और आरा के दलित छात्रों के अम्बेडकर दूसरे हैं? संभवतः यही सच भी है. वे लोग अम्बेडकर से विश्वासघात करते हैं, उनकी विरासत को बेचते हैं और आरा के हमारे ये साथी अम्बेडकर की क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाते हुए कुर्बानियां देते हैं… आइये, आने वाली 11 जुलाई को बथानी मार्च में शामिल हों..

  2. साथी सरोज ने आरा के आंबेडकर हॉस्टल जाकर ये तसवीरें लीं. उन्होंने इस पूरी घटना की रिपोर्टिंग और एक गंभीर लेख भी लिखा.
    आज भी इन होस्टलों में छात्र लौटकर वापस नहीं आ पाए हैं. अधिकांश के प्रमाणपत्र इत्यादि जलाये जा चुके हैं. हत्यारे के श्राद्ध में गैस सिलेंडर फटने पर तुरंत 7 लाख का मुवावजा देने वाली, आनन्-फानन में सीबीआई की जांच बिठाने वाली ‘सुशासन बाबू’ नितीश कुमार की सरकार को अभी तक इन छात्रों को सुरक्षा देने की, इनकी वापसी की गारंटी करने की सुध नहीं आयी है.
    सामजिक न्याय के भ्रष्टतम मसीहा लालू यादव और दलितों के नाम पर अपनी रोटी चलाने वाले राम विलास जैसे लोगों ने ब्रह्मेश्वर की हत्या के मामले में सीबीआई जांच की मांग तो की पर अब तक इन दलित छात्रों और उनके ऊपर हुए दमन के बारे में एक शब्द नहीं बोला है.

  3. As one news report describes,”despite making several pleas to the Bhojpur district administration officials, no security arrangements have been made for them (dalit students). The hostel has not been renovated either after it was vandalised…”

    “Maharaj College student Shabir Kumar, recalling the violent incidents of June 1, told The Telegraph: “The supporters of Brahmeshwar Singh attacked our hostel armed with iron rods, sticks and inflammable substance. They set fire to our property and vandalised our rooms, while shouting anti-Dalit slogans.”

    He added: “Though the office of Bhojpur SP (superintendent of police) is just about 500m away from the hostel, no policeman came to our rescue though the troublemakers attacked the hostel thrice.”

    AISA and RYA demonstrated at the Bihar Assembly in Patna on 20 June against the attack on the dalit hostels – the protestors were arrested.

    Not only were students’ rooms and belongings set on fire, there was looting too: students’ laptops, computers, bicycles etc were looted.

    The Nitish Govt. was prompt to announce Rs 8 lakh as compensation for the gas cylinder accident at Brahmeshwar Singh’s shraddha ceremony – but is yet to take any steps to reconstruct the dalit hostels set on fire by Brahmeshwar’s supporters; or to compensate students whose belongings including certificates etc were destroyed.

    Nitish fiddled like Nero while Ranveer Sena supporters burnt dalit hostels. Police did not respond to SOS by the students even though the hostels were attacked thrice! is this not reminiscent of Gulbarg society and Gujarat 2002?

    The ‘Ambedkar Hostel’ is actually a hostel that needy students had ‘occupied’. The earlier hostel where they had been staying was literally falling apart from lack of maintenance – yet the Govt was refusing to allot this new hostel. So students had occupied this hostel themselves. The Govt had not even provided drinking water, beds, electricity. A hand-pump had been installed by students themselves after collecting ‘chanda’ amongst themselves. These students, mostly from dalit and extremely backward BPL families, used to prepare for BA, MA courses, as well as exams for recruitment of Group ‘D’ employees. Now, after the attack, most of the 800 students have fled. Around 80, though, have stayed on risking their lives, because they know that if the hostel is vacated, they may lose it forever, since it was never legally allotted to them.

    Chintu Kumari, a JNU (MA, CPS, 1st year) student whose brother Sandeep lives in Ambedkar Hostel, accompanied him and other students when they attempted to look for and retrieve documents (that they urgently needed to submit for admissions to college) on 8 June. She said that initially, police and Govt authorities refused to allow these students to enter the rooms. They eventually wrote applications to the DM, who after noting their names and addresses etc, gave them permission. But, she said, the police and authorities threatened and misbehaved with the students, telling them only 4 students couold enter at a time, and warning them, “If you all get above yourselves, and cross your limits, we will teach you a lesson.” Chintu remonstrated, “You didn’t say or do anything to those who attacked the hostel – but you’re threatening these boys!” They roughly asked her who she was to speak, and she said she was the guardian of her brother Sandeep.

    AISA, in successive demonstrations at the Bhojpur DM’s office and the Bihar Assembly, and in letters to the Bihar CM and a meeting with the SC/ST Affairs Minister, has been demanding that the hostel be properly rebuilt speedily, and legally allotted to students; students be compensated for the losses they suffered; students be provided with full security, and provided with alternative living and food arrangemens in the interim till the hostel is rebuilt. The DM has estimated the loss suffered at the hostel ridiculously low: a mere Rs 8 lakh; whereas in reality, if one were to calculate the cost of rooms destroyed, TVs, computers, bicycles looted, documents destroyed, a much higer compensation is due, and in fact each individual student ought to be compensated.

    We need to expose Nitish’s ‘secular’ posturing and recognise that in fact, behind his facade, Nitish is Bihar’s own Narendra Modi!

  4. Chintu Kumari, a JNU (MA, CPS, 1st year) student whose brother Sandeep lives in Ambedkar Hostel, accompanied him and other students when they attempted to look for and retrieve documents (that they urgently needed to submit for admissions to college) on 8 June. She said that initially, police and Govt authorities refused to allow these students to enter the rooms. They eventually wrote applications to the DM, who after noting their names and addresses etc, gave them permission. But, she said, the police and authorities threatened and misbehaved with the students, telling them only 4 students couold enter at a time, and warning them, “If you all get above yourselves, and cross your limits, we will teach you a lesson.” Chintu remonstrated, “You didn’t say or do anything to those who attacked the hostel – but you’re threatening these boys!” They roughly asked her who she was to speak, and she said she was the guardian of her brother Sandeep.

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