मोदी शाह सरकार और गोदी मीडिया के झूठ तथा सच के बीच अंतर

Godi media
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यहां हम कुछ मुद्दों पर चर्चा करेंगे जो कॉरपोरेट मीडिया के द्वारा सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल तथा एनआरसी के सांप्रदायिक  चरित्र के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों को गलत तरीके से दिखाया जा रहा है ऐसे वक्त में जब पूरे देश में सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल तथा एनआरसी के सांप्रदायिक चरित्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और यह समझा जा रहा है कि नागरिकता का आधार धर्म को नहीं बनाया जा सकता, यह संविधान की आत्मा के खिलाफ है और इसका चरित्र सांप्रदायिक है, यह धर्म के आधार पर नागरिकता देने की जो बात है उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा तब इन सब बातों को नकारने के लिए मोदी शाह की जोड़ी एक बार फिर कॉरपोरेट मीडिया तथा दलाल मीडिया की मदद से जनता में झूठ फैलाने की साजिश कर रही है आइए उनके कुछ झूठ पर नजर डालें-

  1. यह एक्ट भारतीय अल्पसंख्यकों को प्रभावित नहीं करेगा अमित शाह और उसके कुछ फालतू दलाल एंकर जैसे सुधीर चौधरी ने भरपूर कोशिश की या बताने की कि यह बिल भारतीय मुसलमानों को प्रभावित नहीं करेगा पर सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है.

सीएए, एनआरसी, एनपीआर एक पूरा प्लान है. एनपीआर, एनआरसी के तहत अगर कोई व्यक्ति मांगी गई डॉक्यूमेंट नहीं दिखा पाता तो उसे पहले तो NRC के तहत रिफ्यूजी करार दिया जाएगा बाद में साथ ही साथ सीएए के तहत उसे नागरिकता दी जाएगी. अगर वह मुस्लिम नहीं है तो गैर मुस्लिम लोगों के लिए भी अगर वह मांगे गए कागजात नहीं दिखा पाते हैं तो उन्हें अनिश्चितकाल तक के लिए डिटेंशन सेंटर में समय गुजारना पड़ेगा. जैसा कि हमने असम में देखा है इन डिटेंशन कैंप की हालत बेहद खराब और मुश्किल भरी है. अगर कोई मुस्लिम NRC के तहत नागरिकता के लिए मांगे गए कागजात नहीं दिखा पाता तो उसके लिए सीएए में कोई सेफ्टी कवर नहीं है. ऐसे मुस्लिमों को डिटेंशन सेंटर में फेंक दिया जाएगा वह बिना किसी मानव अधिकार के राज्य विहीन हो जाएंगे. यह सीएए, एनपीआर, एनआरसी की ट्रिपल-ट्रिक सीधे-सीधे है जो गरीब, अल्पसंख्यक समुदाय के ऊपर हमला है. जो लोग किसी भी कारण से अपने कागजात ना तो बनवा पाए हैं और ना ही सुरक्षित रख पाए हैं अब वह अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, पर गरीब मुसलमान जो रिफ्यूजी स्टेटस पाएंगे उन्हें सीधे सीधे बाहर कर दिया जाएगा यही इस पूरे खेल का असली मकसद है जो मोदी-शाह की सरकार गोदी मीडिया की मदद से करने में जुटी है.

  1. एनपीआर और एनआरसी एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं.

बीजेपी बार-बार यह कहने की कोशिश कर रही है कि एनपीआर सिर्फ एक प्रैक्टिस है. 2021 की जनगणना के लिए इसका एनआरसीसी कोई जुड़ाव नहीं है जबकि जी न्यूज़  24 दिसंबर को एक रिपोर्ट अपलोड कर यह दिखाते हैं कि एनपीआर और एनआरसी एक दूसरे से बहुत जुड़े हुए हैं. गृह मंत्रालय की 2018-19 की रिपोर्ट के पेज 262 में यह साफ-साफ अमित शाह ने कहा है कि एनपीआर पहला कदम होगा एनआरसी की तरफ बढ़ने का. नई जनगणना रजिस्टर में एक कॉलम यह भी होगा कि आपके पिता या दादा का जन्म कहां हुआ है? यह कॉलम 2010 की जनगणना रजिस्टर में नहीं था साफ-साफ दिखाता है कि इसका जुड़ाव सीधे एनआरसी से है. 26 नवंबर 2014 को भी बीजेपी के किरण रिजिजू हुए राज्यसभा में कहा था कि एनपीआर एनआरसी की तरफ बढ़ने का पहला कदम है.

  1. छात्र सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कहा या आरोप लगाया कि आंदोलनकारी नेता छात्रों को गुमराह कर रहे हैं. 26 दिसंबर के आंदोलन में नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने 16 दिसंबर को कहा कि अगर आप सड़क पर ही सब कुछ करना चाहते हैं तब ऐसी स्थिति में हमारे पास मत आइए अगर वहां आंदोलन में हिंसा होगी और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाएगा तब इस मामले में हम कुछ नहीं कर सकते. जब सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा जयसिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की कि आप इस मामले में कुछ स्वतः संज्ञान लें. पुलिस कि उस बर्बरता के खिलाफ जो उसने जामिया के छात्रों के ऊपर की और अलीगढ़ मुस्लिम के छात्रों को बुरी तरह से पीटा और जामिया में बिना प्रशासन की अनुमति की पुलिस ने प्रवेश किया, तब इसके जवाब में एस ए वोबड़े लिए कहा की पहले दंगा और संपत्ति का नुकसान रुके तभी वह कुछ करेंगे मतलब यह सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट और तमाम जिम्मेदार संस्थाओं की नियति पर सवाल उठाता .है गोदी मीडिया ने ऐसा मायाजाल बनाया कि छात्र असली मुद्दों से भटक कर फर्जी में आंदोलन कर रहे हैं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. प्राइम टाइम रिपोर्ट्स और टीवी की स्क्रीन पर फर्जी वीडियो और छात्रों के सोशल मीडिया अकाउंट्स की फर्जी तस्वीरें चलाई जाने लगी ताकि लोगों के दिमाग में आंदोलन का स्वरूप पर सवाल उठाया जा सके और इस आंदोलन को दिग्भ्रमित किया जा सके. असली मुद्दे से भटकाने के लिए टीवी स्क्रीन पर एडिटेड वीडियो एक न्यूज़ तेजी से फैलाई जाने लगी. शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर पुलिस की बर्बरता तेजी से होने लगी जबकि यह सब टीवी स्क्रीन से गायब था. अलीगढ़ में पुलिस की बर्बरता तथा दिल्ली में पुलिस द्वारा गाड़ियों और घरों को नुकसान पहुंचाने के वीडियो सामने आये, फिर भी यहां सरकार आंख मूंदे बैठी रही.

प्रेस एक ऐसा जादुई औजार है जिसके कीबोर्ड पर सरकार खेलती है ऐसा कहना था हिटलर के खूंखार और प्रोपेगेंडा फैलाने वाले मंत्री गोएबल्स का. मोदी शाह की जोड़ी ने यह अच्छी तरीके से समझ लिया है कि उन्हें अपना फासिस्ट एजेंडा कैसे प्रेस की मदद से भारत में संविधान की हत्या कर और उसे एक किनारे रखकर फैलाना है, भले ही अर्थव्यवस्था और देश का एका बिगड़ जाए पर उन्हें गोएबल्स कि इस नीति के तहत भारत में सांप्रदायिकता और अपना फासिस्ट एजेंडा हर हाल में लाना है. बीजेपी-आरएसएस की सरकार गोदी मीडिया या ‘मोडिया’ को एक ऐसे अवतार के रूप में प्रयोग कर रही है जो इन दिनों संस्थानों की स्वायत्तता को नकार कर उन पर बहुत ब्रूटल तरीके से हमला कर रही है. इन मीडिया संस्थानों का सीधा-सीधा हमला देश के जिम्मेदार संस्थानों पर है, वह चाहे विश्वविद्यालय हो या तमाम ऐसे संस्थान जो जनता के प्रति जवाबदेह हैं या जहां देश के भविष्य तैयार हो रहे हैं उन संस्थानों पर निराधार तरीके से हमला कर उनकी छवि को धूमिल करने की कोशिश हो रही है. 2016 में मोडिया ने जेएनयू को एक ऐसी यूनिवर्सिटी के रूप में स्थापित किया जो anti-national है. बिल्कुल उसी तरीके से 2019 में जब छात्रों ने ‘नई शिक्षा नीति’ और और शिक्षा के निजीकरण खिलाफ आवाज उठाई तो इस कॉरपोरेट मीडिया ने उन्हें जिहादी, एंटी-नेशनल और ना जाने क्या-क्या कहा. यह प्रतिरोध को दबाने और उसे गलत दिशा देने का बहुत पुराना तरीका है जो मीडिया द्वारा प्रयोग किया जाता है ताकि आंदोलन की असली छवि जनता के बीच में ना जाए. एक महत्वपूर्ण पक्ष जो इस मीडिया का दिखाया जाना जरूरी है वह है इसकी वैश्विक संरचना दुनिया के कॉरपोरेट अर्थव्यवस्था पर तेजी से हमला कर रहे हैं और अपनी फंडिंग रूढ़िवादी फासीवादी पार्टियों को तेजी से दे रहे हैं. अब यह फंडिंग सीधे-सीधे मीडिया चैनल्स को भी प्रभावित कर रही है और उनके तथ्य तथा कंटेंट के स्तर पर भी प्रभाव डाल रही है. अब इन चैनल का कंटेंट सीधे तौर पर सत्ताधारी दल के हाथ में है जो प्रोपेगेंडा और फैक्ट के स्तर पर मनमाना व्यवहार करते हैं. सच-झूठ तथ्य तथा असली घटना कहीं पीछे दब जाती है और सत्ताधारी-फासीवादी-पूंजीवादी दल का प्रोपेगंडा ही सिर्फ मीडिया पर दिखाया जाता है. मीडिया कि यह फंक्शनिंग भारत में सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी जो बीजेपी आर एस एस को उनके झूठ और प्रोपेगंडा को फैलाने में मदद करती है वह बहुत बड़ी मात्रा में है. यह बी जे पी आर एस एस द्वारा गढ़े गए झूठ को बहुत तेजी से लोगों के बीच में फैल आती है.

 

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