यूपीएसएसएफ: गेस्टापो की वापसी

‘गेस्टापो’ हिटलर की एक ख़ुफ़िया पुलिस थी. इसको ‘सीक्रेट स्टेट पुलिस’ भी कहते हैं. हिटलर ने अपने विरोधियों का दमन करने के लिए इसे बनाया था. भक्त लोग यह जानकर प्रसन्न होंगे कि इसे खास कर कम्युनिस्टों के दमन के लिए बनाया गया था. यह समझ लीजिए जिस भी संस्था के आगे ‘ख़ुफ़िया’ होने का तुर्रा चस्पा हो, उसे दमन के असीमित अधिकार प्राप्त होते हैं. मानवाधिकार जैसे सवाल उसके लिए बेमानी हो जाते हैं और बड़ा दुर्लभ संयोग है कि वर्तमान प्रधानमंत्री भी मानवाधिकार के प्रति असीमित घृणा रखते हैं जैसा कि पत्रकार राना अयूब ने अपनी किताब ‘गुजरात फाइल्स’ में बताया है. हाल-ताज में परिस्थियां हिटलर के जर्मनी जैसी ही हैं. यहां भी सत्ता के लिए अल्पसंख्यक मुसलमानों को उसी तरह निशाना बनाया जा रहा है जैसे यहूदियों को जर्मनी में बनाया गया था. जर्मनी की तरह भारत भी प्रताड़ना-गृह बनता जा रहा है. यूं कहिए सूत्र दर सूत्र घटित हो रहा है.

अभी उत्तर प्रदेश में 15 सितंबर, 2020 को एक नए पुलिस बल यूपी स्पेशल सिक्योर्टी फ़ोर्स (UPSSF) का नोटिफिकेशन जारी किया गया है. इसे बिना वारंट या बिना मजिस्ट्रेट के आर्डर के गिरफ्तार करने, तलाशी लेने का अधिकार होगा. मजेदार बात यह है कि इसे हाईकोर्ट के आदेश पर बनाया गया है. इसके बारे में यूपी के एडिशनल चीफ सिक्रेटरी (होम) का ट्रिब्यून में बयान छपा है जिसमें वे कहते है कि “यह यूपी के मुख्यमंत्री का एक ड्रीम प्रोजेक्ट है.” रोचक नुक्ता यह है कि जो न्यायालय का आर्डर है वही मुख्यमंत्री का ड्रीम भी है. अद्भुत सामंजस्य है! क्या यह न्यायप्रिय होने का दिखावा है? या और भी इसके ढंके-छुपे उद्देश्य हैं. एक बात सो साफ़ है कि असीमित अधिकारों से लैस अतिरिक्त सुरक्षा बल कभी भी जनता को सुरक्षित नहीं करते हैं बल्कि जनता अधिक असुरक्षित हो जाती है. उस पर दमन के खतरे बढ़ जाते हैं. आफ्सपा जैसे कानून ने कश्मीर और मणिपुर क्या गुल खिलाया है सबको मालूम ही है.

इस फ़ोर्स के गठन के पहले चरण में करीब 1,747 करोड़ खर्च होने हैं. आगे और भी होंगे. जरा सोचिए, महामारी के दौर में जब सरकार घाटे का रोना रो रही है. लोगों की नौकरियां जा रही हैं. सरकार ने जनता के टैक्स से भरे खजाने के मुंह पर डबल ताला लगा रखा है और अर्थशास्त्रियों ने सरकार को अधिक खर्च करने के लिए कहा है. तब सरकार नयी पुलिस फ़ोर्स के नाम पर, सुरक्षा के नाम सैकड़ों करोड़ रूपये फूंके डाल रही है. कोर्ट का यह आदेश तो मुख्यमंत्री जी का सपना बन जाता है लेकिन वह आदेश मुख्यमंत्री का सपना नहीं बनता जिसमें अवैध रूप से अंतिम चयन सूची से निकाल बाहर किए गए प्रतियोगियों को नियुक्ति देने बात होती है.

मनुष्यता को सदियों पीछे धकेल देने की यह प्रक्रिया ही गेस्टापो है. यही गेस्टापो की वापसी है. जिसमें लूट, झूठ, दमन को विकास और न्यूनार्मल कहा जाता है. हिटलर भी अलहदा जर्मनी बनाने पर तुला था. अब हिंदुस्तान समेत हमारे पड़ोसियों को भी यह बीमारी लग चुकी है. पकिस्तान, श्रीलंका, म्यामार हर जगह गेस्टापो की वापसी हो रही है. कट्टरपंथ का विस्तार हो रहा है. मामला अंतर्राष्ट्रीय है.

-राजन विरूप

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